लोगों की राय

नारी विमर्श >> सुनो मालिक सुनो

सुनो मालिक सुनो

मैत्रेयी पुष्पा

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16932
आईएसबीएन :9788181434838

Like this Hindi book 0

मैं मानकर चलती हूँ कि सामाजिक नैतिकताएँ निश्चित ही लेखक की वे मर्यादाएँ नहीं हो सकतीं जिनका वह नियमपूर्वक पालन कर पाये। लेखकीय स्वतन्त्रता परम्पराबद्ध नैतिकता पर समाज के सामने सवाल खड़े करती है और हर हाल में टकराहट की स्थिति बनती है। इसका मुख्य कारण है समय का बदलाव। हमारे समाज में आज भी रामायण (रामचरित मानस) के आदर्श चलाये जाते हैं-भरत सम भाई, लक्ष्मण जैसा आज्ञाकारी, राम जैसा मर्यादा पुरुष, सीता जैसी कुलवधू। अयोध्या का रामराज्य-बेशक ये आदर्श भारतीय परिवार को पुख्ता करने के लिए स्तम्भ स्वरूप हैं, लेकिन व्यक्ति का जीवन रामचरित मानस की चौपाई भर नहीं है और न मनुस्मृति के श्लोक और न आर्यसमाजी मन्त्रों का रूप।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book