उपन्यास >> बेनजीर - दरिया किनारे का ख्वाब बेनजीर - दरिया किनारे का ख्वाबप्रदीप श्रीवास्तव
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प्रदीप जी का नवीन उपन्यास
बेनजीर
काशी नगरी के पॉश एरिया में उनका अत्याधुनिक खूबसूरत मकान है। जिसके पोर्च में उन की बड़ी सी लग्जरी कार खड़ी होती है। एक छोटा गार्डेन नीचे है, तो उससे बड़ा पहले फ्लोर पर है। जहाँ वह कभी-कभी पति के साथ बैठकर अपने बिजनेस को और ऊँचाइयों पर ले जाने की रणनीति बनाती हैं। तमाम फूलों, हरी-भरी घास, बोनशाई पेड़ों से भरपूर गार्डेन में वह रोज नहीं बैठ पातीं, क्योंकि व्यस्तता के कारण उनके पास समय नहीं होता। जो थोड़ा बहुत समय मिलता है, उसे वह अपने तीन बच्चों के साथ बिताती हैं। जो वास्तव में उनके नहीं हैं।
दोनों पति-पत्नी जितना समय एक दूसरे को देना चाहते हैं, वह नहीं दे पाते। उन दोनों के बीच प्यार का अथाह सागर हिलोरें मारता वैसे ही बढ़ता जा रहा है, जैसे ग्लोबल वार्मिंग ध्रुवों की बर्फ पिघला-पिघला कर सागर के तल को बढ़ाये जा रही है। और ऐसे ही बढ़ते सागर तल के किनारे वो अपने होटल बिजनेस की नींव रख चुकी हैं। जिसका विस्तार पूरे देश में करने का उनका सपना है। लेकिन एक चीज है जो उन दोनों को भीतर ही भीतर कुतर रही है, वैसे ही चाल रही है जैसे इंसानों के कुकृत्य पृथ्वी को चाल रहे हैं। लेकिन उन्हें जो चाल रहा है वह उन दोनों का या किसी अन्य का भी कोई कुकृत्य नहीं है।
मेरे बहुत प्रयासों के बाद वह तैयार हुए कि मैं उनके जीवन को आधार बना कर यह उपन्यास लिख सकता हूँ। हालांकि पति में मैं कुछ हिचकिचाहट देख रहा था। उनकी रॉलर कॉस्टर जैसी उतार-चढाव भरी ज़िन्दगी की जानकारी मुझे संयोगवश ही कहीं से मिली थी। उस संक्षिप्त सी जानकारी में ही ऐसी बातें थीं, जिसने मेरे लेखक हृदय को उद्वेलित कर दिया कि इस कैरेक्टर को और जानूं और समझूं, फिर लिखूं।
लिखूं अपने प्रिय मित्र, पाठकों के लिए एक ऐसा उपन्यास जो वो पढ़ना शुरू करें तो पूरा पढ़कर उसे छोड़ न पाएं, बल्कि खोए रहें उसी उपन्यास में। बेनज़ीर को महसूस करते रहें अपने आसपास, अपने हर तरफ। मन में उठे इस भाव ने मेरा खाना-पीना, उठना-बैठना, घूमना-फिरना और रोज रात को सोने से पहले दो पैग ली जाने वाली व्हिसकी, सब पर अधिकार जमा लिया।
हर साँस में बेनज़ीर, उपन्यास, बेनज़ीर, उपन्यास रच-बस गया। मैं पूरी तन्मयता से लग गया कि बेनज़ीर मुझसे मुखातिब हो कह डालें अपना सब कुछ। स्याह-सफेद सब। पूरी निष्ठा समर्पण के साथ किया गया मेरा परिश्रम सफल हुआ।
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