नई पुस्तकें >> आँख का पानी आँख का पानीदीपाञ्जलि दुबे दीप
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दीप की ग़ज़लें
10. दिन हसीं लगने लगे रातें सुहानी हो गईं
दिन हसीं लगने लगे रातें सुहानी हो गईं
यूँ मुलाकातें हमारी जाफ़रानी हो गईं
ज़हन में छाई ख़ुमारी दूर होती ही नहीं
आप से दो चार बातें जब ज़ुबानी हो गईं
घिस गए जूते हैं उसके पाँव में छाले पड़े
बेटियाँ इक बाप की जब से सयानी हो गईं
दर्द में डूबे हैं सारे लोग इस संसार में
ज़िंदगी की रौनकें सारी ही फ़ानीं हो गईं
तेज़ और दमदार हैं जूडो कराटे सीखतीं
बेटियाँ देखो तो सबकी आज नानी हो गईं
उनको हासिल हो न पाई फिर सुकूँ की ज़िंदगी
जिनपे यारो आफ़तें कुछ आसमानीं हो गईं
पूर्णिमा की रात में इस 'दीप’ का क्या काम है
चाँद की अद्भुत छटाएं कामयानी हो गईं
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