नई पुस्तकें >> आँख का पानी आँख का पानीदीपाञ्जलि दुबे दीप
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दीप की ग़ज़लें
9. मौला तू मुझे राह दिखाने के लिए आ
मौला तू मुझे राह दिखाने के लिए आ
गर हो सके तो जीस्त बचाने के लिए आ
ग़म रोज मिले इतने के टूटा हूँ बिखर कर
रब तू ही मुझे आज उठाने के लिए आ
जो जख़्म लगे दिल को उन्हें किसको दिखाएं
मरहम मेरे जख्मों पे लगाने के लिए आ
जिंदा हूँ मगर कोई भी ख़्वाहिश है न मक़सद
कुछ ख़्वाब मेरे दिल में सजाने के लिए आ
मुझको तो तेरे इश्क़ ने बर्बाद किया है
आबाद मुझे फिर से कराने के लिए आ
मर मर के यूँ ताउम्र जिये जा रही हूँ मैं
इक दिन तू मेरे ग़म को भुलाने के लिए आ
ख़्वाहिश है मेरी आख़िरी दीदार तेरा हो
उल्फ़त का 'दीप' अब तो जलाने के लिए आ
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