नई पुस्तकें >> आँख का पानी आँख का पानीदीपाञ्जलि दुबे दीप
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दीप की ग़ज़लें
7. दिल का लगाना इक तरफ़ और दिल जलाना इक तरफ़
दिल का लगाना इक तरफ़ और दिल जलाना इक तरफ़
रिश्ता निभाना इक तरफ़ नज़रें चुराना इक तरफ़
देता ख़ुदा तो सबको है पर बैठ के खाना नहीं
कुछ काम करना इक तरफ़ और मुफ़्त खाना इक तरफ़
हमने सुनी है राँझना और हीर की भी दोस्ती
है प्यार अपना इक तरफ़ उनका फ़साना इक तरफ़
संगीत सीखो उम्र भर आता नहीं फिर भी समझ
नग़्मा सुनाना इक तरफ़ और सुर मिलाना इक तरफ़
महबूब से बेहतर ज़माने में कोई दिखता नहीं
दुनिया की बातें इक तरफ़ उसका इशारा इक तरफ़
जब आसमाँ से बिजलियाँ भी कड़कड़ा गिरने लगीं
घर झोंपड़े जलने लगे मन तिलमिलाया इक तरफ़
बुझना नहीं है 'दीप' को करना उजाला रोज़ ही
बिखरेगी रौशनी उसे है जगमगाना इक तरफ़
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