नई पुस्तकें >> मैं था, चारदीवारें थीं मैं था, चारदीवारें थींराजकुमार कुम्भज
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राजकुमार कुम्भज की 110 नई कवितायें
जिनकी नहीं राह कोई
- युद्ध-मैदानों में
- फ़ौलादी इरादे लिए दौड़ रहे हैं घोड़े
- दौड़ते घोड़ों के पाँव हवा में हैं
- हवा में मचल रही हैं चिंगारियाँ
- ऐसे में, ऐसे में बहुत संभव है
- कि दौड़ते घोड़ों के पाँवों से
- लिपट सकते हैं वे सर्प
- जिनकी नहीं राह कोई
- न रोशनी।
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