नई पुस्तकें >> मैं था, चारदीवारें थीं मैं था, चारदीवारें थींराजकुमार कुम्भज
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राजकुमार कुम्भज की 110 नई कवितायें
आदमी का हौसला
- देह, आत्मा, हवा और आग
- इन्हें तो बार-बार नए अर्थों में पहचानना पड़ता है
- यही है, यही है इस जीवन, इस मौसम
- और मेरी दुनिया की दुविधा यही है
- कि इससे बच निकल लेने की कोई सुविधा नहीं है
- कहने को आसमान बड़ा है
- जो हर किसी के ख़िलाफ़ खड़ा है
- लेकिन आदमी का हौसला भी कुछ कम नहीं
- जो तूफ़ानों से लड़ा है।
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