आचार्य श्रीराम शर्मा >> महाकाल का सन्देश महाकाल का सन्देशश्रीराम शर्मा आचार्य
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Mahakal Ka Sandesh - Jagrut Atmaon Ke Naam - a Hindi Book by Sriram Sharma Acharya
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भारतीय संस्कृति के अध्यात्म स्तम्भ वाला दुर्ग ढह चुका है। आस्तिकता औरकर्त्तव्य परायणता की नींव हिल चुकी है। नीति और सदाचरण की चौपाल फूट रही है। आदर्श और सिद्धान्तों के द्वार अस्तव्यस्त हो चुके।स्वास्थ्य, मनोबल,सुदृढ़ गृहस्थ, जातीय संगठन का मसाला लगभग समाप्त सा है। उस दुर्ग पर दखल देने के लिए बाह्य संस्कृतियाँ अवसर हूँढ रही हैं। ऐसे समय में प्रत्येकप्रबुद्ध व्यक्ति का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह देश की आध्यात्मिक क्रान्ति की भूमिका निभाने में हिस्सा ले। यह अंतिम समय, अंतिम चेतावनीहै। अभी भी राष्ट्र सजग न हुआ, तो भारतीय संस्कृति का सूर्य अस्त ही हुआ मानना चाहिए।
(वाङ्मय-४६, पृ० १.८३)
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हमारी दो प्रकार की कार्यपद्धति है। एक को ढाल और दूसरी को तलवार कहना चाहिए। एकसे बचाव करना है और दूसरे से खदेड़ना है। इन दिनों खदेड़ने वाला काम प्रत्यक्षत: बड़ा दीखता है, क्योंकि असुरता ने जीवन-मरण जैसी समस्याउत्पन्न कर दी है। विनाश अपनी चरम सीमा पर है। उसे अभी और कुछ समय खेल खेलने दिया जाए, तो फिर लाखों वर्षों की संचित सभ्यता और प्रकृति का कहींअतापता भी नहीं चलेगा। इस विनाश-विभीषिका के उत्पादन केन्द्रों पर समय रहते गोलाबारी करनी है, ताकि महाप्रलय का अवसर प्राप्त करने से पूर्व हीवे अपने हाथ-पैर तुड़ा बैठे और वह न कर सकें, जो करने की डींग हाँकते और आतंक मचाते हैं। यह काम हमारे जिम्मे है।
(वाङ्मय-२८, पृ० १.३४)
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मनुष्य जब तक जीवित है, उसे परिवर्तन पूर्ण उतार-चढ़ाव और बनने-बिगड़ने वालीअनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना ही होगा। दुःख-सुख, हानि-लाभ, सफलता-असफलता, सुविधा एवं कठिनाइयों के बीच से गुजरना ही होगा।लाख चाहने और प्रयत्न करने पर भी वह इनको आने से नहीं रोक सकता। वे आएँगी ही और मनुष्य को इनसे जूझना ही होगा।
(अखण्ड ज्योति-१९६६, अप्रैल-११)
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