आचार्य श्रीराम शर्मा >> महाकाल का सन्देश महाकाल का सन्देशश्रीराम शर्मा आचार्य
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Mahakal Ka Sandesh - Jagrut Atmaon Ke Naam - a Hindi Book by Sriram Sharma Acharya
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घंटों निरर्थक बकवास करने से एक छोटे से तत्त्व या उपदेश पर अमल करना, अपनीआत्मा का विकास करना, सामाजिक तथा आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ना अधिक कल्याणकर है। बहुत-सी बातें बनाना सरल है, दूसरों को उपदेश देने मेंबहुतेरे कुशल होते हैं, किन्तु वास्तविक तथ्य यह है कि जो बात अंतरात्मा को लगे, उसे कार्य रूप में परिणत कर प्रत्यक्ष किया जाए। सफलता के लिए यदिकोई आवश्यक चीज है, तो वह कठोर कर्म ही है। कर्म ही संसार में मुख्य तत्त्व है। केवल बातें बनाना शेखचिल्लियों तथा ढपोरशंखों का काम है।
(अखण्ड ज्योति-१९४७, सितम्बर)
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लेखों और भाषणों का युग अब बीत गया। गाल बजाकर लम्बी-चौड़ी डींग हाँककर याबड़ेबड़े कागज काले करके संसार के सुधार की आशा करना व्यर्थ है। हम अपना मानसिक स्तर ऊँचा उठाएँ। चरित्र की दृष्टि से अपेक्षाकृत उत्कृष्ट बनें ।अपने आचरण से ही दूसरों को प्रभावशाली शिक्षा दी जा सकती है। गणित, भगोल, इतिहास आदि की शिक्षा में कहनेसुनने की प्रक्रिया से काम चल सकता है, परव्यक्ति निर्माण के लिए तो निखरे हुए व्यक्तित्वों की ही आवश्यकता पड़ेगी। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए सबसे पहले हमें स्वयं ही आगे आना पड़ेगा।
(अखण्ड ज्योति-१९६२, सितम्बर-३५)
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हमें स्वस्थ परम्पराओं को जन्म देना चाहिए। समाज को, व्यक्ति का वास्तविक हितजिसमें होता है, उसी मार्ग को अपनाना चाहिए। अपना मन सदा नीति, न्याय और औचित्य के पक्ष में रखना चाहिए। कुकर्म करते हुए एक छोटे बच्चे से भी,अपनी अंतरात्मा से भी डरना चाहिए, पर सत्कर्म का आरंभ करते हुए हमें सारे समाज की, सारी दुनिया की भी परवाह नहीं करना चाहिए। अनीति और अनाचार केविरुद्ध यदि अकेले ही लड़ने को खड़ा होना पड़े, तो उसमें झिझकना नहीं चाहिए।
(वाङ्मय-६४, पृ० १.१८)
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