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आचार्य श्रीराम शर्मा >> महाकाल का सन्देश

महाकाल का सन्देश

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16271
आईएसबीएन :000000000

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Mahakal Ka Sandesh - Jagrut Atmaon Ke Naam - a Hindi Book by Sriram Sharma Acharya

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मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है। वह चाहे तो देवता भी बन सकता है और यदि चाहेतो नर-पिशाच भी, परन्तु इनके परिणामों में चुनाव की कोई सुविधा नहीं है। जिन्होंने भी असुरता पकड़ी और नृशंसता अपनायी, उन्हें अंततः उसको दण्डभुगतना ही पड़ा। भले ही वे तत्काल अपने अहंकार को संतुष्ट कर सके हों, पर परिणाम में उससे भी भयंकर यातना तथा अन्त में उनकी दु:खद स्मृतियों केअलावा और कुछ भी नहीं मिल पाया है।

(वाङ्मय-६४, पृ० २.३१)

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चरित्र का मेरुदण्ड अपने प्रति ईमानदारी है। यह अपने प्रति ईमानदारी तभी आती है,जब हम हर कदम पर अपने को देखते-परखते और तौलते चलते हैं। इस दृष्टि से आत्म-निरीक्षण चरित्र की जड़ है। इसी की प्रेरणा से मनुष्य दोषों को दूरकरने, अपने को बदलने, दूसरों के लिए उपयोगी बनने का निश्चय करता है। ऐसी आदमी तब तक चुप नहीं बैठता जब तक उसके जीवन में आत्मा की शक्ति स्थापित नहो जाए।

(वाङ्मय-६४, पृ० ५.१६)

 

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झूठ आखिर झूठ ही है। वह आज नहीं तो कल जरूर खुल जाएगा। असत्य का जब भण्डाफोड़ होता है, तो उससे मनुष्य की सारी प्रतिष्ठा नष्ट हो जाती है। उसे अविश्वासी और ओछा आदमी समझा जाने लगता है। झूठ बोलने में तात्कालिक थोड़ा लाभ दिखाई पड़े तो भी आप उसकी ओर ललचाइए मत, क्योंकि उस थोड़े लाभ के बदले में अंततः अनेक गुनी हानि होने की संभावना है। आप अपने वचन और कार्यों द्वारा सच्चाई का परिचय दीजिए।

(अखंड ज्योति-१९४७, जुलाई)

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