जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
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आधुनिक भारत के निर्माता
तिलक का जीवन माण्डले में बिल्कुल नियमित था। प्रातः उठने के बाद वह एक घण्टे तक एकाग्र चित्त हो ध्यान लगाया करते थे। फिर वह स्नान आदि से निवृत्त हो चाय-जलपान करके लिखने-पढ़ने में लग जाते थे। दोपहर के भोजन के बाद उन्हें काफी सामान मिलता था और उन्हें स्वयं भी कुछ वस्तुएं लेने की छूट थी। पूना से उन्हें कभी-कभी मसाले, अचार और आम के पार्सल भी आते थे। भोजन के बाद वह फिर अध्ययन में लग जाते थे, यद्यपि गर्मियों में ऐसा कठिन हो जाता था। डेढ़ बजे से लगभग वह एक गिलास नींबू पानी पीते थे। इसके बाद वह फिर लिखने-पढ़ने के अपने काम में जुट जाया करते थे। शाम को भोजन 5 बजे ही करना पड़ता था, क्योंकि कोठरी 6 बजे बन्द कर दी जाती थी। सोने से पहले एक घण्टा फिर वह एकाग्र चित्त से ध्यान लगाते थे। लेकिन जब दो वर्ष बाद मधुमेह का रोग बढ़ गया, तब वह केवल जौ के आटे की पूरी, दूध और गाढ़ा खट्टा दही ही खाते थे। यह भोजन उनके स्वास्थ्य के लिए लाभदायक सिद्ध हुआ।
इसी प्रकार माण्डले में उनका जीवन चलता रहा। उनके मन बहलाव का साधन केवल प्राचीन मनीषियों के विचारों का अध्ययन रहा। कुल मिलाकर उनका स्वास्थ्य यहां ठीक ही रहा। साल में एक दो बार उन्हें बुखार आया, किन्तु कोई परेशानी नहीं हुई। अलबत्ता उनका मधुमेह का रोग बढ़ गया और कुछ दांत भी गिर गए। उनकी दृष्टि ओर श्रवणशक्ति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, किन्तु वह इसे केवल अपने बुढ़ापे की निशानी बताते थे।
लम्बी से लम्बी रात का भी इस दुनिया में अन्त होता ही है। इसलिए सन् 1914 वर्ष के आरम्भ होते ही उनकी मुक्ति का दिन निकट आ गया। मई महीने में उन्होंने अपनी पुस्तकें पूना भेज दीं और अपनी रिहाई की प्रतीक्षा करने लगे। आखिरकार 8 जून, 1914 की सुबह जेल सुपरिण्टेण्डेण्ट उनकी कोठरी (शेल) में आया और सामान बांधकर तैयार हो जाने को कहा। उन्हें रंगून के लिए रेलगाड़ी में बिठा दिया गया, लेकिन यहां पर भी उन्हें जनता की नजरों से बचाकर ले जाने की पूरी सावधानी बरती गई। दूसरे दिन सुबह उन्हें सीधे रंगून बन्दरगाह ले जाकर 'मेयो' नामक जहाज पर बिठा दिया गया, जहां पहुंचते ही उन्हें 'पूना के पुलिसवालों के परिचित चेहरे देखने को मिले' और इस तरह उनकी देश-निर्वासन की सजा खतम हुई।
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- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट