जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
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आधुनिक भारत के निर्माता
तिलक ने कहा : ''धार्मिक विषयों पर चिन्तन और पूजा तो एकांत में भी सम्भव है, किन्तु जनता को पुनर्जाग्रत करने के लिए कुछ प्रदर्शन आवश्यक हैं। इसी राष्ट्रीय भावना के कारण यह उत्सव केवल पारिवारिक त्योहार न रहकर शीघ्र ही सार्वजनिक पर्व बन गया। यह परिवर्तन ध्यान देने योग्य है, क्योंकि हिन्दू धर्म में पूजा अधिकतर वैयक्तिक या पारिवारिक रूप में होती है-ईसाई धर्म या इस्लाम की भांति हिन्दुओं में सामूहिक रूप से पूजा नहीं होती। किन्तु राष्ट्रीयता की भावना का विकास होने से गणपति उत्सव शीघ्र ही सामूहिक रूप पा गया।"
यद्यपि इस पर्व का उद्देश्य सामाजिक एकता और पुनरुत्थान था, पर इससे राजनैतिक जाग्रति में भी बड़ी सहायता मिली। तिलक ने इसको कभी छिपाने का प्रयत्न भी नहीं किया : ''जब ईसाई धर्मोपदेशक अपने भाषणों में राजनैतिक विपयों की चर्चा कर सकते हैं तो कोई कारण नहीं कि इस उत्सव में मेलेवाले भी देश की राजनैतिक परिस्थितियों की चर्चा न करें। यदि उत्सव में कुछ गीत अन्य विषयों के गाए जाते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं। इस धार्मिक पर्व को इसी कारण केवल राजनैतिक प्रचार का बहाना बताना अनुचित है।''
तिलक के विरोधियों ने इन पर्वों को केवल सरकार-विरोधी प्रचार का साधन बताया था। 'इंडियन अनरेस्ट' में वैलेण्टाइन चिरोल ने लिखा :
''इन उत्सवों में धार्मिक गीत गाए जाते हैं और नाटक खेले जाते हैं जिनमें पौराणिक आख्यानों का उपयोग विदेशियों-म्लेच्छों-के प्रति घृणा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। 'म्लेच्छ' शब्द का व्यवहार यूरोपीयों और मुसलमानों के लिए होता है। इस पर्व के जुलुस आदि मुसलमानों और पुलिस के साथ झगड़े करने की दृष्टि से ही निकाले जाते हैं। इन झगड़ों के कारण जो अदालती कार्रवाई होती है, उस उपयोग भी उत्तेजक भाषणों के लिए होता है। गणपति उत्सव आरम्भ करने के साथ ही तिलक का प्रचार-क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया है।"
शिवाजी उत्सव का आरम्भ 1896 में हुआ था। जहां गणपति पौराणिक देवता थे, वहां मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी ऐतिहासिक व्यक्ति थे। शिवाजी का चरित्र महाराष्ट्र के लोगों के हृदय के कितना निकट था, यह इसी से सिद्ध होता है कि दोनों महायुद्धों में अंगरेजी सरकार ने भी अपनी सेना की ओर महाराष्ट्रीय लोगों को आकृष्ट करने के लिए उन्हीं के नाम का उपयोग किया। तिलक ने परामर्श दिया कि पहला शिवाजी मेला रायगढ़ में हो जहां उनका अभिषेक और देहावसान हुआ था। इस प्रस्ताव का जनता ने और राजा-महाराजों ने भी हार्दिक स्वागत किया, यहां तक कि कई राजा-महाराजों ने पूना में हुई प्रारम्भिक बैठक में भाग भी लिया। इस बैठक में ही तिलक ने कहा कि यद्यपि कोल्हापुर के महाराज जैसे एक व्यक्ति का दान ही शिवाजी स्मारक के लिए पर्याप्त है, फिर भी उचित होगा यदि अधिक से अधिक आम लोगों का इसमें योग दान हो। शुरू में बम्बई के गवर्नर ने भी इस प्रस्ताव से सहमति प्रकट की थी।
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- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट