नई पुस्तकें >> संवाददाता संवाददाताजय प्रकाश त्रिपाठी
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इकतीस अध्यायों में रिपोर्टिंग के उन समस्त सूचना-तत्वों और व्यावहारिक पक्षों को सहेजने का प्रयास किया गया है, जिनसे जर्नलिज्म के छात्रों एवं नई पीढ़ी के पत्रकारों को अपनी राह आसान करने में मदद मिल सके
पूर्वारंभ : पत्रकारिता की पहली पाठशाला
यह तो भला कौन कहे कि जर्नलिज्म के छात्रों अथवा नई पीढ़ी के पत्रकारों के लिए यह कोई ऐसी किताब है, जो समाचार जगत के हर हासिल का निष्कर्ष हो, लेकिन इसे बुनते समय ध्यान मुख्यतः विश्वविद्यालयों के भिन्न-अभिन्न पाठ्यक्रमों और पत्रकारिता विभागाध्यक्षों के लगभग एक-जैसे उन महत्वपूर्ण अभिमत पर केंद्रित रहा कि मुद्दत से मीडिया के छात्रों और प्रशिक्षुओं के लिए 'संवाददाता' जैसी एक पुस्तक हो, जिसमें रिपोर्टिंग के विविध विषय एवं अधिकांश पक्ष, सविस्तार एक साथ तत्वतः संकलित हों। 'संवाददाता', सूचना-संवाहक। सामग्री-चयन एवं लेखन के दौरान मेरे लिए दूसरा विचारणीय विंदु रहा, विभिन्न प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में कार्यरत रहते हुए स्वयं के वे अनुभव, निष्कर्ष और एक प्रश्न कि पत्रकारों की नई पीढ़ी पहले की तरह क्यों नहीं? शहरों, महानगरों की परिधि लांघते हुए दुर्गम स्थानों तक, गाँव-गाँव मीडिया क्षेत्र जिस वेग से विस्तारित होता जा गया है, क्या उस अनुपात में सुयोग्य संवाददाता (रिपोर्टर) का संस्थानों में अभाव नहीं महसूस किया जा रहा है? क्या अयोग्यता के इस प्रश्न को प्रशिक्षण संस्थानों के मत्थे मढ़कर संपादक प्रतिष्ठान स्वयं अनुत्तरित हो सकता है? इसलिए यह सुपरिचित-प्रतिष्ठित मीडिया विद्वानों के विचारों से समृद्ध यह पुस्तक 'संवाददाता' नए रिपोर्टर्स के लिए भी उतनी ही उपयोगी हो सकती है, जितनी कि जर्नलिज्म के छात्रों के लिए।
पत्रकारिता के छात्रों, नयी पीढ़ी के पत्रकारों, किंचित मीडिया विद्वानों के बीच भी एक और प्रश्न उल्लेखनीय हो सकता है कि इतना विशद विषय रिपोर्टिंग ही क्यों? इस प्रश्न का समाधान पुस्तक पढ़ने के बाद ही पाया जा सकता है। पुस्तक के बाईस अध्यायों में रिपोर्टिंग के उन समस्त सूचना-तत्वों और व्यावहारिक पक्षों को सहेजने का प्रयास किया गया है, जिनसे जर्नलिज्म के छात्रों एवं नई पीढ़ी के पत्रकारों को अपनी राह आसान करने में मदद मिल सके। तथ्यात्मक दृष्टि से विषय-केंद्रित मीडिया मनीषियों के विचार प्राथमिकता से प्रस्तुत करने का उद्देश्य इतना भर है कि पत्रकारिता में रिपोर्टिंग जैसे बुनियादी कार्य-दायित्व पर तरह-तरह की जिज्ञासाओं का समाधान भरसक आधा-अधूरा न रह जाए।
रिपोर्टिंग के पाठ्यक्रम तक पहुँचने से पहले, पढ़ाई और पेशे में काम आने वाली एक ज़रूरी बात। अपने असहनीय सफरनामे पर रोशनी डालती हुई डॉ अंजना बख्शी कुछ ऐसी बातें बताती हैं, जो पत्रकारिता के छात्रों के लिए एक बड़ा सबक हो सकती हैं। वह लिखती हैं- "विपरीत परिस्थितियों में भी मैंने हिन्दी से एमए करने के बाद सागर विश्वविद्यालय से जनसंचार एवं पत्रकारिता में बीए, एमए किया और वहाँ सपना जागा मीडिया में जाने का। क्लास में मुझे भरपूर प्रोत्साहन मिलता था। तब तक मेरी कई कविताएं और लेख मध्यप्रदेश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे, और लगातार आकाशवाणी छतरपुर, जबलपुर, सागर (म.प्र.) के केन्द्रों से मेरे कार्यक्रम प्रसारित हो रहे थे, और इसी बीच दमोह के स्थानीय अखबार में युवा एवं महिला मुद्दों पर लिखने के लिए एक ‘कॉलम’ दे दिया गया, लेकिन मुझे अपनी क्षमताओं से अपना आकाश कम लगा। और मैं 14 अक्टूबर 2002 को दमोह से राजधानी दिल्ली चली आई अकेले. आंखों में एक खूबसूरत सपना लिए ‘आज-तक’ में समाचार-वाचिका बनने का। और फिर सफर शुरू हुआ राजधानी से जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय तक का। इतना जुनून सवार था, इतना पागलपन था कि दिल्ली आने के बाद ‘आज-तक’ के ऑफिस में झंडेवालान रोज अपना सीवी लेकर चली जाती, और हर बार वहाँ से निराश ही लौटती। अबकी बार तो गार्ड ने गेट से ही भगा दिया। अब हैरान-परेशान-सी वहीं बगल में ईटीवी में पहुँची अपना सीवी दिया और चली आई। आज जिंदगी थकी-थकी सी लग रही थी। उदास तो थी पर टूटी नहीं।
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- अनुक्रमणिका
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