कविता संग्रह >> महामानव - रामभक्त मणिकुण्डल महामानव - रामभक्त मणिकुण्डलउमा शंकर गुप्ता
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युगपुरुष श्रीरामभक्त महाराजा मणिकुण्डल जी के जीवन पर खण्ड-काव्य
भूमिका
कर्तव्य और कार्य में उदारचेता
महामानव महाराजा मणिकुण्डल जी
डॉ० सूर्यप्रसाद शुक्ल
एम.ए.पी.एच.डी.डी.लिट्
मणिकुण्डल भूषण सम्मान प्राप्त भाव प्रधान रमणीय एवं लयात्मक अभिव्यक्ति होने के कारण कविता समाज से सहजतः सम्बद्ध है। लेकिन सामाजिक सम्पत्ति होते हुए भी उसके महत्व और आनन्द को जनोपभोग्य बनाने के लिए यह आवश्यक है कि जन साधारण में स्थित सुप्त कवि भावों को जाग्रत किया जाय। श्री उमाशंकर गुप्त सक्रिय समाज सेवी होने के साथ ही हृदयवान कवि भी है। कविता के मर्म और कवि धर्म से वह अवगत हैं । अतः उन्होंने समाज सापेक्ष्य जीवन दर्शन पर आधारित महाकाव्य “महामानव" की रचना की है तथा अतीत और वर्तमान के जीवन मूल्यों का समन्वय करते हुए, अपनी कल्पना और प्रतिभा से यथार्थ और आदर्श का विस्तृत सृजन संवरण किया है। काव्य का यह वृहत आयोजन महाकाव्य के शास्त्रीय विधान का भी निर्वाह है। साहित्य शास्त्र में महाकाव्य के महानायक और रचना मे जो आवश्यक गुण बताये गये हैं वह प्रायः इसमें हैं। संस्कृत साहित्य के महान विद्धान भामह (पांचवी शताब्दी ई०) के अनुसार सुदीर्घ कलेवर वाला कथानक, महान चरित्रों पर आश्रित, पंच संघियों से युक्त, उत्कृष्ट और अलंकृत शैली में लिखित तथा जीवन के विविध रूपों और कार्यों का वर्णन करने वाला सर्गबद्ध सुखान्त काव्य ही महाकाव्य होता है। आगे दण्डी (छठी शताब्दी ई०) ने यह भी जोड़ दिया है। (काव्यादर्श १-१४-१८) कि इस में कथानक इतिहास या ऐतिहासिक कथा से उद्भुत हो, जिसका नायक चतुर और उदात्त हो, जिसका उद्देश्य चतुवर्गफल की प्राप्ति हो जो अलंकृत भावों और रसों से भरा हो, रसानुरूप संन्दर्भ, अर्थानुरूप छन्द और लोक रंजकता भी इसमें होनी ही चाहिए, महाराजा मणिकुण्डल जी के जीवन चरित पर आधारित यह महाकाव्य पूर्णतयाः नूतन है और मौलिक है। इस महाग्रंथ के रचयिता ने भी प्रायः सभी उपर्युक्त लक्षणों और गुणों का अपने लेखन में समावेश किया है। पाश्चात्य विद्धान अरस्तु के अनुसार महाकाव्य में समुचित आनन्द प्रदान करने की क्षमता होनी चाहिए। वह मात्र इतिहास का अनुवाद नहीं होना चाहिए। कवि को इसे जीवन्त बनाने के लिए विविध घटनाओं और वस्तुओं के प्रस्तुतीकरण में युग जीवन के आधार पर अपनी समझ के अनुरूप परिवर्तन और वर्णन करने का अधिकार होना चाहिए। श्री उमाशंकर गुप्त ने भी अपने विवेक से समृद्ध अनेक घटनाओं और दृश्यों में मानवीय दृष्टि से अनेक जीवन्त परिवर्तन स्वीकार किये हैं। उन्होंने अपने काव्य में नाटकीय तत्वों, अति प्राकृत और अलौकिक कार्यों या घटनाओं, कथानक में प्रयुक्त कल्पनाओं और सम्भावना पर आधारित तथ्यों तथा भाषा और शब्द चयन की युगानुरूप परिवर्तित प्रकृति पर भी विचार करके अपनी प्रयुक्ति का त्रेता युग से भिन्न आज की काल स्थिति के अनुसार प्रयुक्त किया है। अलौकिकता और रहस्यात्मकता के भी कुछ प्रसंग है जो पात्रानुकूल कवि कल्पना के नूतन प्रयोग है, जिनसे कथावस्तु में आनन्द की रसात्मकता का सृजन हो सका है।
इस महाकाव्य का उद्देश्य आधुनिक जीवन में व्याप्त हो रही निराशा और आत्म तत्व के प्रति उदासीनता का निराकरण करना है। कवि ने अपने काव्य नायक के सतत क्रियाशील जीवन से व्यक्ति को निराशा से उबारने का काम किया है। उसमें अपने जातीय गौरव को अतीत से वर्तमान तक लाने का स्वस्थ प्रयत्न किया है। यद्यपि उसके कथानक में सामंतवादी समाज व्यवस्था का प्रभाव तो है ही किन्तु इस युग की राज व्यवस्था में राजा और प्रजा के बीच एक पिता और पुत्र का सा सम्बन्ध तो होना ही था। अतः प्रजा में आज की वामपंथी विचारधारा का कोई प्रयास व्याप्त नहीं था। राजतंत्र की शक्ति में प्रजा का हित, सुख, समृद्धि और शान्ति भी समाहित होती थी।
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