कविता संग्रह >> महामानव - रामभक्त मणिकुण्डल महामानव - रामभक्त मणिकुण्डलउमा शंकर गुप्ता
|
0 |
युगपुरुष श्रीरामभक्त महाराजा मणिकुण्डल जी के जीवन पर खण्ड-काव्य
प्रस्तुत महाकाव्य “महामानव" वस्तुतः साधारण मानव से महामानव बने मणिकुण्डल जी के जीवन वृत्तान्त एवं जीवन दर्शन की प्रस्तुति का प्रयास है। ब्रह्मपुराण, वैश्याणाम गौरवः, वैश्य समुदाय का इतिहास, अयोध्यावासी वैश्यों का इतिहास के साथ-साथ तमाम जनश्रुतियों, ईश्वरीय प्रेरणा, स्वप्न-संदेश एवं कवि कल्पनाओं के आधार पर इस महाकाव्य में उनका वृतान्त प्रस्तुत करने का प्रयास मैने किया है। मेरा मानना है कि मेरे पूरे मनोयोग से उनके सर्वांगीण व्यक्तित्व को प्रस्तुत करने के प्रयास के बावजूद उनके विशाल व्यक्तित्व का वर्णन करने में कुछ न कुछ न्यूनता अवश्य रह गयी होगी क्यों कि मेरी सीमित बुद्धि महामानव के विशाल व्यक्तित्व को कैसे चित्रित कर सकती है? सच तो यह है कि यह सब विघ्न विनाशक, पूरणकर्ता श्री गणेश जी, बुद्धिदात्री वाणी माता सरस्वती जी, महाविद्या माँ पीताम्बरा जी एवं परम रामभक्त अजर अमर हनुमान जी की कृपा से ही सम्भव हुआ है। इसलिये इस महाकाव्य की महिमा स्वरूप प्रस्तुति आप सभी को उनके आशीर्वाद के रूप में प्राप्त होगी।
प्रस्तुत महाकाव्य 'महामानव' में भावनाओं कथावस्तु एवं लेखन शैली की समस्त विशेषतायें गणेश जी सरस्वती जी, पीताम्बर जी, विष्णु जी, सूर्यदेव, राम जी, हनुमान जी, मणिकुण्डल जी की कृपा का परिणाम है। महाकाव्य में जो भी त्रुटि हो उसे मेरी अज्ञानता एवं मानवीय भूल मानकर क्षमा करें। कृपया इसका एकाग्रभाव से पठन-पाठन अध्ययन करें ताकि मेरे द्वारा किया गया यह प्रयास जन जन तक पहुचे और मुझे भी आत्मसंतुष्टि मिले।
यहां यह उल्लेखनीय है कि इस ग्रन्थ की रचना में मेरी पत्नी श्रीमती रीता गुप्ता का अत्यधिक सहयोग रहा जिन्होंने रात दिन मेरे लेखन अभियान में मुझे प्रोत्साहन देकर एवं सेवा करके सहयोग दिया।
साथ ही मेरे ज्येष्ठ पुत्र दीपक कौशल, पुत्रवधू पूजा, पौत्री अंशिका, पौत्र अमृतांश, तथा पुत्री शिखा, दामाद मनीष गुप्ता एवं दौहित्री अविका, पुत्र आलोक कौशल,पुत्रवधू शिल्पा पौत्र समृद्ध का भी आभार व्यक्त करना चाहूँगा जिन्होंने लेखन का माहौल बनाने में सहयोग किया। इसी श्रृंखला में सुप्रसिद्ध साहित्यकार, समीक्षक एवं चिकित्साविद् डा० सूर्य प्रसाद शुक्ल का शत-शत आभारी हूँ जिन्होंने न केवल समय समय पर मार्गदर्शन देकर वरन् समालोचना लिखकर ग्रन्थ निर्माण को आयाम देने का प्रयास किया। इस सन्दर्भ में समय समय पर संस्कृत व्याकरण में सहयोग हेतु मैं संस्कृत विदुषी श्रीमती आरती मिश्रा का भी आभार व्यक्त करना चाहूँगा, महाकाव्य के प्रकाशन में मुद्रक अमित श्रीवास्तव एवं चित्रकार संजय एवं आलोक को भी धन्यवाद देना चाहूंगा, जिन्होंने इसे रुचिकर एवं पठनीय बनाकर आकर्षक ग्रन्थ स्वरूप प्रदान किया। मुझे समाजसेवा एवं साहित्यसर्जन हेतु प्रेरणा देने वाले सुप्रसिद्ध पत्रकार एवं समाजसेवी गोलोकवासी श्रद्धेय कमल भैया को नमन के साथ पुस्तक के प्रकाशन में प्रेरणा देने हेतु हम सर्व श्री अध्यक्ष सिद्धगोपाल प्रभाकर (कानपुर), राज कुमार राज (बांदा), सुनील गुप्ता(रायबरेली), ओ०पी० गुप्ता (नोयडा), उमाशंकर गुप्ता (अतर्रा), दुर्गेश (दिल्ली), धर्मेन्द्र कौशल (गुरसहायगंज), पवन कौशल (पुखरायाँ), वीरेन्द्र गुप्ता (कानपुर) एवं दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार अंजनी निगम का भी आभारी हूँ। साथ ही मनोज गुप्ता 'गुड्डू' (कानपुर), गजेन्द्र गुप्ता एड० (सागर), शक्ति स्वरूप गुप्ता (कानपुर), आदित्येश प्रभाकर (कानपुर), अशोक गुप्ता (कानपुर), सुशील गुप्ता (कानपुर), दुर्गाप्रसाद गुप्ता पार्षद (कानपुर), संदीप गुप्ता (कानपुर), आनंद गुप्ता (कानपुर), जयशंकर सर्राफ (औरैया), उमेश गुप्ता खुनखुन (लखनऊ), एस.एल.वैश्य (लखनऊ), डॉ० स्मृतिशेष कमल भैया अजय गुप्ता (लखनऊ), सहदेव महतो (रांची), श्रीकांत चूड़ी वाले (वर्धा), अशोक राजा (भोपाल), राजेश गुप्ता (जबलपुर), अरविन्द गुप्ता (रायपुर), राजा राम गुप्त (पुखरायाँ), अमित गुप्ता सर्राफ (पुखरायाँ), अमित कौशल (नोयडा NCR), डॉ० के० एन० कौशल (फैजाबाद), संतोष गुप्ता (पुणे), गिरधारी लाल गुप्ता (बांदा), शंभू दयाल गुप्ता (गुरसहायगंज), दीप चन्द्र गुप्ता (देहरादून), संजय गुप्ता (देहरादून), आशीष गुप्ता (गाजियाबाद), श्याम बाबू गुप्ता (गोवा), सेठ देवेन्द्र गुप्ता (गुरसहायगंज), अमरनाथ सर्राफ (काठमांडू) इत्यादि का पुस्तक प्रकाशन में सहयोग हेतु विशेष आभार व्यक्त करना चाहेंगे । श्री रामनवमी महोत्सव समिति कानपुर के संस्थापक एवं दीनदयाल उपाध्याय स्मारक समिति के अध्यक्ष श्री गोपीकृष्ण ओमर के मार्गदर्शन हेतु उनका भी विशेष आभारी हूँ।
|