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महामानव - रामभक्त मणिकुण्डल

उमा शंकर गुप्ता

प्रकाशक : महाराजा मणिकुण्डल सेवा संस्थान प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :316
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16066
आईएसबीएन :000000000

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युगपुरुष श्रीरामभक्त महाराजा मणिकुण्डल जी के जीवन पर खण्ड-काव्य

ब्रह्मा, विष्णु, महेश अर्थात् तीनों परमाणु का यह सामन्जस्य आदि अनादिकाल से है। इसी कारण किसी एक के बिना बाकी दो शक्तियां भी प्रभावित होने लगती हैं। इसी आधार पर युग, चतुर्युग, कल्प एवं ब्रह्मदिवस की कल्पना धर्मग्रन्थों में वर्णित है। इस युग में सृष्टि के पुनः सृजन अर्थात जीवन का वर्णन ही सृष्टिसिद्धान्त में दिया गया है जिसे ग्रहों के पुनःनिर्माण एवं वर्तमान तक के विकासक्रम के रूप में माना जा सकता है। इन सबसे परे रहते हुये भी उन्होंने प्रभु की लीला, आत्मा परमात्मा के सम्बन्धों को भी सृष्टि के सिद्धान्तों के माध्यम से उठाया है। उन्होंने प्रश्न किया है कि

जगत है ईश की कृति जब, इसे नश्वर बनाया किसलिये?
सृजन, विध्वंस जीवन मृत्यु क्रम इसमें सजाया किसलिये?
अमर हो तुम, तुम्हारे अंश हम, क्यों मृत्यु-भय संताप है?
तुम्हारा तेज शाश्वत है, क्षणिक हमको बनाया किसलिये?।।

आत्मा के परमात्मा में लीन होने की बात पर परमात्मा रूपी राम और शक्ति रूपी सीता को श्रद्धासहित नमन किया है

अन्तर्मन में जिनकी मूरति, बन प्राण सदा ही विराजत है।
जिनकी छवि सुन्दर श्यामल सी, तन मन रोमांच सुहावत है।
जिनकी महिमा कह वाल्मीकि, हो गये महाकवि अखिल जगत।
मैं दीपक रवि का गान करूं, कह गये बहुत कुछ बड़े भगत।।

तथा

रामसिया पर्याय है शीर्ष शक्ति का रूप।
सत् की विजय असत्य पर ज्यों, शीतल पर धूप।।
ज्यों शीतल पर धूप मनोहर मनहर जोड़ी।
बलि बलि जाऊं राम, अंखला माया तोड़ी।।

निश्चित रूप से मणिकुण्डल जी का यही विशाल व्यक्तित्व उन्हें मानव से महामानव बनाता है। पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास के साथ नमन करते हुये मैं निम्नपंक्तियों से महामानव मणिकुण्डल जी को प्रणाम करता हूँ।

"दया धर्म के रूप है, शान्त चित्त आभास ।
राज धर्म भी प्रेममय, जन जन हिय आवास।।
ज्ञान, क्षमा, औदार्यता, जिनके भूषण खास।
परहित जिनका ध्येय हो, ऐसे विश्व प्रकाश ।
मानवता पर्याय है, धैर्य सुवासित रूप।
परम नमन आराध्य मम, हे मणिकुण्डल भूप।"

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