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ऐतिहासिक >> हेमचन्द्र विक्रमादित्य

हेमचन्द्र विक्रमादित्य

शत्रुघ्न प्रसाद

प्रकाशक : सत्साहित्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1989
पृष्ठ :366
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1604
आईएसबीएन :00000

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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!


सड़सठ



दूसरे दिन सुबह के कुहासे में राजा हेमचन्द्र और सालारे-आजम शादी खां की देखरेख में पैदल सैनिकों और तोपचियों का हरावल दस्ता सईदी खां के साथ पानीपत के लिए चल पड़ा।

उधर बैरम खां ने अलीकुली खां शैबानी को सिपहसालार बनाकर हरावल दस्ते के साथ अपनी आधी फौज भेज दी। बाकी फौज अकबर के साथ थी, यह फौज थानेसर के पास आकर ठहर गई। थोड़ा आराम कर बैरम खां अकबर के साथ करनाल होते पानीपत की ओर बढ़ता गया।

शादी खां सालारे-आजम थे। गजराज सिंह, विजयवाहन, खेमराज, बहादुर खां और हाजी खां ने अपनी-अपनी टुकड़ियों को संभाल लिया। डंके, नगाड़े और दमामे बज रहे थे। तुरही के स्वर आकाश को भेद रहे थे। लहराते झंडों से लग रहा था कि पंख पसारे पछी दूर-दूर उड़ानें भरने को बेचैन हैं।

हेमचन्द्र ने राधावल्लभ जी की प्रतिमा को प्रणाम किया, पूरी शक्ति से शंख बजाया। दो क्षण के बाद पारो की भस्मी पर फूल चढ़ाये। मां दुर्गा कुंवर से आशीष पायी। पार्वती ने आसुओं को रोककर गले में माला डाल दी, और वह धरती की ओर देखने लगी।

हेमचन्द्र ने गम्भीर स्वर में कहा- 'मेरी तलवार मेरे हाथों में दो, पार्वती !'

पार्वती ने तलवार को आगे बढ़ाया। हेमचन्द्र ने तलवार को धारण कर लिया।

नूरी ने पास आकर दूसरी तलवार सौंप दी और कहा -'मेहमान राजा ! आपका इकबाल बुलन्द हो।'

जमाल मोहन ने गेंदे की जयमाला पहना दी।

हेमचन्द्र ने आग्रह किया - 'आप दोनों को आगरा जाना है। अकालपीड़ितों को सस्ते वस्त्र मिलें, इसी पर ध्यान देना है। चाचा हरसुखलाल इस कार्य में मदद देंगे। उनसे मेरा अनूरोध कर देंगे।'

हम जायेगे। अकाल-पीड़ितों के लिए सस्ते कपड़ों का प्रबन्ध होगा। आप निश्चिन्त रहें, आप विजयी हों।'-जमाल मोहन ने आश्वासन दिया।

चन्दा शूल लेकर आ गई। शूल को राजा हेमचन्द्र के हाथों में देते हुए कहा-'महाराज ! युद्ध-क्षेत्र में पारो और चन्दा के अपमान को प्रत्येक क्षण स्मरण करायेंगे। यह युद्ध मातृभूमि और मातृजाति (स्त्रियों) की प्रतिष्ठा के लिए होगा।'

'मुझे प्रत्येक क्षण स्मरण रहेगा, चन्दा ! प्रत्येक पल स्मरण रखूगा। ये शब्द यमराज से भी टकरा जाने की प्रेरणा देंगे, और यहां गजेन्द्र 'सिंह की तलवार दिल्ली दुर्ग की रक्षा में कौंधती रहेगी बांसुरी के साथ।'

'मैं दुर्ग की रक्षा में तत्पर रहूंगा, महाराज !'-गजेन्द्र सिंह मुखर हो उठा।

हेमचन्द्र ने आकाश की ओर देखा। कुहासा छंट चुका था। सूर्य का प्रकाश फैलने लगा, यह सन् १५५६ ई० का चार नवम्बर था।

हेमचन्द्र हवाई नामक मस्त हाथी पर सवार हो आगे बढ़े। दूसरे हाथी पर सालारे-आजम शादी खां सवार हुए। गजराज सिंह, विजयवाहन, खेमराज, बहादुर खां और हाजी खां ने अपने-अपने घोड़ों पर सवार हो सेना का आह्वान किया। विशाल वाहिनी चल पड़ी। राजपथ के दोनों ओर खड़ी प्रजा ने जयघोष कर अपनी मंगल कामना की।

दिल्ली से बाहर आते ही सेना बिना रुके आगे बढ़ती रही। हेमचन्द्र ने सोचा कि हरावल दस्ते के साथ आग उगलने वाली तोपें हैं। उनके हरावल दस्ते के पास तोपें नहीं होंगी। ये तोपें ही शैबानी को धराशायी कर देंगी, और यह विशाल सेना बैरम और अकबर को पेशावर से आगे ढकेल कर ही लौटेगी। हरावल दस्ते की मदद के लिए किसी को भेजने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए। पर मन में एक खटका-सा हुआ। शादी खां से सलाह की।

शादी खां ने कहा-'हमारी फौज बढ़ती जा रही है। रुकना तो नहीं है, वैसे हरावल की मदद के लिए एक दूसरी टुकड़ी को भेजना चाहिए।'

अचानक खबर मिली कि अलीकुली खां शैबानी की ललकार पर मुगलों ने अपने सर पर कफन बांधकर तोपों को चारों ओर से घेर लिया। तोपों पर कब्जा कर लिया, सिपाही बिखरने लगे हैं। सईदी खां मदद के लिए इन्तजार कर रहे हैं।

हेमचन्द्र को लगा कि सूर्य कुहासे में छिप गया है, अन्धकार छा गया है। यह कैसे हो गया ? लेकिन वे इसकी चिन्ता नहीं करेंगे। तोपों से भी भयानक नंगी तलवारों की धार है। हां, यह अशुभ हो गया। अशुभ को शुभ हो जाना है।

उनके आह्वान पर सेना बढ़ती रही, आगे बढ़ने पर सईदी खां अपनी बची-खुची फौज के साथ आ मिला। चेहरा पीला पड़ गया था, शादी खां ने हिम्मत बढ़ाई।

उधर शैबानी की जीत की खबर को सुनकर बैरम खां अकबर के साथ पानीपत के पास पहुंच गया।

५ नवम्बर सन् १५५६ ई० को दोनों सेनाएं आमने-सामने आ गयीं। नगाड़े, दमामे, डंके और तुरही की आवाज के साथ हाथियों की चिग्घाड़ और घोड़ों की हिनहिनाहट मिलकर भयानक उत्तेजना पैदा करने लगी। सेनापतियों की ललकार के साथ दोनों सेनाएं गुथ गयीं। हेमचन्द्र ने अपनी गजसेना को दोनों छोरों से आगे बढ़ाया। पन्द्रह सौ पर्वताकार मदमस्त जंगी हाथी थे।

मुगल सिपहसालार खानजमां शैबानी ने अपने तोपचियों को आग उगलने का हुक्म दे दिया। अब मुगलों के पास तोपों की संख्या दुगुनी थी। वे तो फौज के बीच में खड़ी थीं। इन तोपों ने आग उगलना शुरू कर दिया।

हेमचन्द्र की सेना का मध्य भाग घुड़सवारों का था। वे तोपों की आग व गोलों से परेशान हो उठे। घोड़ों की हिनहिनाहट बढ़ गई, मौत बरस रही थी।

हेमचन्द्र ने गजराजसिंह को आदेश दिया कि तोपों पर उछलकर तोपों का मुंह बन्द कर देना है। गजराज सिंह के संकेत पर वीर सैनिक जयघोष कर उछल पड़े। आग में जलते-मरते-बचते उन्होंने तोपचियों को खत्म कर दिया। तोपों को बेकार बना दिया। तोपों के चुप हो जाने पर पैदल सैनिक तलवार और भाले लिये आगे बढ़े। साथ ही मदमस्त हाथी भी बढ़ने लगे। सूड़ों में बरछे लिये और हौदे में वीर धनुर्धरों को बैठाए हाथी झूमते हुए बढ़ चले। हाथियों के सिर पर डरावने जानवरों की खालें पहनाई गई थीं। पेट पर लोहे की पाखारें, मस्तक पर ढालें, दोनों तरफ कटारियां और सूड़ों में जंजीरें और तलवारें हिलाते हुए वे चल रहे थे।

हेमचन्द्र ने दाहिनी छोर पर मस्त गजसेना के साथ आक्रमण किया। साथ में बहादुर खां और खेमराज भी थे। गजसेना मुगलों को कुचलती हुई आगे बढ़ने लगी। हेमचन्द्र की ललकार पर बहादुर खां और खेमराज की टुकड़ियों के वीर सैनिकों ने भीषण आक्रमण किया। मुगल फौज एक जंगी हाथियों से कुचलने लगी। दूसरी तरफ तीरों और तलवारों की मार से उनकी चीखें फैलती गयीं।

खानजमां शैबानी फौज के बिचले हिस्से से भागकर आया। वहां बैरम खां मरहम खां के साथ डट गया। शैबानी ने दाहिनी तरफ आकर अपने भानजे हुसैन कुली खां को ललकारा। मुगल फौज थोड़ी संभल गई। उसने आगे बढ़ने की कोशिश की, परन्तु हेमचन्द्र की गजसेना आगे बढ़ती गई।

शैबानी ने कोशिश की कि तलवारों से जंगी हाथियों की सूड़ों को काट डाला जाए, परन्तु हाथी पर सवार शूरों ने उन्हें अपने तीरों से बेंध डाला। शैबानी को पीछे हटना पड़ा, बहादुर खां और खेमराज बढ़ते रहे।

अब हेमचन्द्र ने अपने विशाल हवाई हाथी पर बायीं तरफ पहुंच गए। मुगल फौज के बायें छोर को कुचलने के लिए गजसेना चिंघाड़ती हुई आगे बढ़ी। हेमचन्द्र की ललकार सुनाई पड़ी। विजयवाहन के सैनिक राजपूताने से आये सैनिकों के साथ तलवार और भाले लिये झपट पड़े। मुगल फौज हेमचन्द्र की गजसेना को अपनी ओर आते देख घबरा उठी। शाह कुली मरहम खां दौड़कर आया। उसने अपनी टुकड़ी के साथ हाथियों पर हमले किए। हाथी घायल होने लगे। हेमचन्द्र का क्रोध उफन पड़ा।

हाथी पर सवार योद्धा अपने तीखे तीरों से लक्ष्यभेद करने लगे। मीणा सैनिकों ने तीरों की वर्षा शुरू कर दी, मुगल फौज पीछे हटने लगी। हेमचन्द्र के आदेश पर गजसेना ने पीछे हटती हुई मुगल सेना को कुचल डाला, मुगलों में हा-हाकर मच गया।

फौज के बिचले हिस्से को बैरम खा और अलीकुली खां शैबानी ने संभालने की पूरी कोशिश की। उन्होंने शादी खां, हाजी खां और सईदी खां पर एक साथ हमला किया। मध्यभाग का युद्ध भीषण हो उठा, वृद्ध शादी खां जवांमर्दी से लड़ते हुए आगे बढ़ने लगे। परन्तु वे मुगलों से घिर गये।

हेमचन्द्र ने दूर से देखा, रोष उबल पड़ा, वे अपने हाथी पर आगे बढ़े। मध्यभाग के भयानक युद्ध में शादी खां भी शहीद हो गए। हेमचन्द्र के सामने सालारे-आजम शादी खां का कटा हुआ सर झलक रहा था। वे स्वयं धनुष-बाण को संभालकर युद्ध करने लगे। अब मुगलों को नहीं छोड़ना है, बायें और दाहिने हिस्से तो कुचल दिए गए हैं। अब यह अन्तिम युद्ध है, और वे बढ़ते चले गये।

शैबानी ने बैरम खां के इशारे पर अपनी सारी ताकत लगा दी। मौत और जिन्दगी का सवाल था। इसी जंग पर सब मुनहसर है। हेमू बढ़ता आ रहा है, दोनों ओर से तीरों की बौछार शुरू हो गयी। लगा कि आसमान छिप गया। तीरों की छाया में हेमचन्द्र का मस्त हाथी बढ़ता जा रहा था। मुगल फौज के पैर कांपने लगे, पीछे हटने की नौबत आ गयी, वे पीछे हटने लगे।

उसी समय अचानक एक तीर हेमचन्द्र की आंख में आ लगा।

आंख से खून बहने लगा, हेमचन्द्र ने अपने हाथ से तीर को खींचकर निकाल फेंका। आंख पर रूमाल बांध लिया, धनुष को फिर से संभाल लिया। तीर चला, मुगल आंखें फाड़कर देखने लगे। शैबानी को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। उसकी फौज तो पीछे हट ही रही थी। कुछ ही देर में हेमचन्द्र की आंख में पीड़ा बढ़ने लगी, पीड़ा बढ़ती गयी, बेहोशी छाने लगी। सहसा वह हौदे से गिर पड़े, दूर खड़ा शैबानी मुस्कराया। आंखों में कुछ चमका, उसने हल्ला कर दिया कि हेमू मारा गया। आवाज बढ़ती गयी, महावत ने हवाई हाथी को मोड़ लिया। उसने युद्धक्षेत्र से हाथी को हटा लेने की कोशिश की।

अफगान-पठान सिपाहियों ने देखा कि हौदे में राजा हेमचन्द्र गिर पड़े हैं। उन्हें यकीन हो गया था कि राजा मारे गए। सालारे-आजम तो पहले ही मारे जा चके हैं। उनकी हिम्मत टूट गयी। मुगल सिपहसालार शैबानी ने 'अल्ला हो अकबर' के नारे लगाकर हमला बोल दिया। हेमचन्द्र की फौज भागने लगी। बहादुर खां, गजराजसिंह, विजय वाहन और खेमराज ने अपनी सेना को संभालने की कोशिश की लेकिन फौज तितर-बितर होने लगी। महावत बेहोश हेमचन्द्र को लिये हटता जा रहा था। मुगलों ने दूनी ताकत से हमला किया। हारती बाजी जीत में बदल गई, मुगल जीत गये।
बैरम खां की नजर बेहोश हेमचन्द्र पर थी। उसने शैबानी को भागते हुए महावत को पकड़ने का हुक्म दिया। मुगलों ने आगे बढ़कर हवाई हाथी को घेर लिया। बेहोश हेमचन्द्र पकड़ लिये गये।

पानीपत के मैदान में मारने और भागने का रोमांचकारी दृश्य खड़ा हो गया। चारों तरफ लाशों का अम्बार था। खून की धाराएं बह रही थीं। चीख-चीत्कार से आसमान थर्रा रहा था। मुगल अपनी जीत के नारे लगा रहे थे।

६ नवम्बर १५५६। इसी दिन खून से लथपथ धरती ने देखा कि बेहोश हेमचन्द्र अकबर और बैरम खां के सामने लाये गये।

बैरम खां ने कहा- 'बादशाह सलामत के हुजूर में अफगानों का राजा हेमू बक्काल मौजूद है। इसने मुगलों की ताकत से टकराने की जुर्रत की है। इसे आप सख्त सजा दें जिससे आगे किसी को चुगताई खानदान के दिलेर मुगलों से टकराने की हिम्मत न हो। मुगल हिन्दुस्तान पर हुकूमत करने आए हैं। उस बार शहंशाह बाबर ने राणा सांगा को कुचलकर अपनी हुकूमत कायम की थी। इस बार हेमू की लाश पर बादशाह जलालुद्दीन अकबर शाह का परचम फहरायेगा।'

‘खान बाबा ! दुश्मन तो अपने आप मौत तक जा पहुंचा है और हमारी जीत के डंके बज रहे हैं।' अकबर ने कहा।

'जहांपनााह ! दुनिया को दिखाना है कि मुगल तलवार की नोंक से यह हुकूमत कायम हुई है। यह खतरनाक दुश्मन है, इस पर रहम नहीं करें।' यह कहकर बैरम खां ने अकबर के हाथ से तलवार लेकर हेमचंद्र का सर काट डाला।

साथ-साथ बैरम ने ऐलान किया- 'हेमू का सर शहर-दर-शहर होता हुआ काबुल तक पहुंचेगा जिससे सभी कौमें इस खतरनाक दुश्मन की मौत को जान लें और मुगलों की फतहयाबी की खबर हो जाये।

बादशाह अकबर के साथ सभी सालारों और सरदारों ने सर 'हिलाकर ताईद की।

कहकहों के बीच थरथराती धरती ने देखा कि एक मुगल सरदार हेमचन्द्र विक्रमादित्य के सर को भाले की नोंक में टांगकर नुमाइश के लिए दौड़ा चला जा रहा है। लोग घरों में छिपकर अपने और देश के दुर्भाग्य पर फूट-फूटकर रोने लगे।
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