ऐतिहासिक >> हेमचन्द्र विक्रमादित्य हेमचन्द्र विक्रमादित्यशत्रुघ्न प्रसाद
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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!
बासठ
आप सबकी एकजुट ताकत के सहारे हमने बंगाल से मालवा तक के बागियों को रास्ते पर ला दिया है। अफगान राज का झंडा फहरा रहा है। आप जानते हैं कि अफगान सरदारों की आपसी फूट से मुगलों को मौका मिल गया है। वे दिल्ली तक आ चुके हैं, उधर बादशाह आदिलशाह एक बड़ी बीमारी की वजह से चुनार के किले में पड़े हुए हैं। वे उधर नहीं आ सकते, उनका दिया हुआ झंडा साथ में है। सिर्फ आप हैं और आपके साथ मैं हूं।
'अफगानों, हिन्दी मुसलमानों और हिन्दू सैनिकों की वीरता के कारण हम जीत का झंडा लहराते बढ़ रहे हैं। तीनों की एकता नयी ताकत बनकर आई है। मालिक की मेहरबानी है और प्रजा भी खुश है। अब आगरा की ओर बढ़ना है, मुगलों से मुकाबला है। आप चाहेंगे तो सालारे-आजम शादी खां साहब के करम से बढ़ेंगे। मैं भी आप सबके साथ चल पड़गा, खून की आखिरी बूंद तक लड़गा, और अपनी मिट्टी में मिल जाऊंगा।'–हेमचन्द्र ने कथन समाप्त कर सबकी ओर स्नेह से देखा और हाथ जोड़ दिए।
शादी खां ने खड़े होकर हेमचन्द्र का साथ देने की कसम खाई। खुदा को हाजिर नाजिर किया।
हिन्दी मुसलमानों की ओर से 'हेमचन्द्र जिन्दाबाद' की आवाज आई। अफगानों के भी हाथ उठ गए, नारे गूंजने लगे। गजराज सिंह, विजयवाहन और खेमराज ने जयघोष किया। शादी खां ने अपना एक हाथ हेमचन्द्र की पीठ पर रखा, दूसरे हाथ से नंगी तलवार को आसमान की ओर उठा दिया।
हेमचन्द्र के सेनापतित्व में फौज आगरे की ओर बढ़ चली। योगी शिवनाथ, गजेन्द्र सिंह, जमाल मोहन और सरजू के साथ महिलाएं वहीं रह गयीं, अभी उधर जाना सम्भव नहीं था।
हाथी, घोड़े, तोपखाने और पैदल सिपाहियों के साथ फौज आगे बढ़ने लगी।
फौज ने देखा कि रास्ते में गांवों और हाटों की प्रजा हेमचन्द्र का जयघोष कर रही है, सैनिकों का स्वागत कर रही है। अफगान सिपाही और सरदार रिआया के रुख में इस बदल को देख ताज्जुब कर रहे थे। खुश हो रहे थे, लेकिन एकाध के दिलों में ये भी ख्याल आता था कि लोग बादशाह का नाम भूल रहे हैं। शादी खां साहब भी उनका नाम नहीं लेते, लगता है कि उनसे सभी नाउम्मीद हो चुके हैं। बस, अफगान परचम के साये में बढ़ना है, मुगलों से जूझना है।
हमायूं ने अपना दारुल सल्तनत दिल्ली में बनाया था, तो भी आगरे की इज्जत बनी हई थी। मुगल सरदार सिकन्दर खां उजबेक आगरे की देखभाल कर रहा था। अफगानों का खौफ मिटाकर आगरे के किले में रह रहा था। आगरा से लेकर लाहौर तक अफगान बादशाह की ऐयाशी की बात फैल गई थी, इसलिए उनका भी खौफ नहीं रह गया था, लेकिन मुगल हेमचन्द्र के नाम से घबरा जाते थे।
सिकन्दर खां उजबेक को खबर मिली कि हेमचन्द्र मालवे को जीतकर आगरे की ओर आ रहा है। सरवर ने ही खबर दी, वह कांप उठा, लेकिन सरवर ने हेमचन्द्र से मुकाबले के लिए उकसाया। खुद पठानों की ओर से साथ देने की कसम खायी। सिकन्दर खां को मालूम हुआ कि हेमचन्द्र के लिए रिआया में खुशी है और छोटी-सी मुगल फौज में घबराहट है। इसलिए वह कुछ तय नहीं कर सका, इसी परेशानी में रातें कटने लगीं।
अचानक खबरनवीस ने बताया कि हेमचन्द्र आगरा की सरहद में दाखिल हो चुका है। अफगानों, हिन्दी मुसलमानों और हिन्दुओं की बहुत बड़ी फौज साथ में है। मुगल फौज भागने को तैयार हो गई। सिकन्दर ने तय कर लिया कि वह इस घबराई फौज से मुकाबला नहीं कर सकता। दिल्ली में तारदी बेग के साथ मोर्चा लगाना ठीक रहेगा। यह सोचकर वह अपनी फौज के साथ दिल्ली की ओर बढ़ गया। आगरे को खाली कर दिया, सरवर हाथ मलता रह गया।
हेमचन्द्र की फौज आगरे में प्रवेश कर गई। प्रजा ने हेमचन्द्र का स्वागत किया। सरवर हरखलाल के निवास में छिप गया। हरखलाल स्वयं भागने की तैयारी करने लगा।
बिना युद्ध के आगरा पर हेमचन्द्र का अधिकार हो गया। हेमचन्द्र की जय' के शब्द सारे नगर में गूंज रहे थे। हेमचन्द्र गंभीर बना रहा। शादी खां ने रिआया के जजबात का एहसास कर लिया।
हेमचन्द्र ने कहा-'हमारे कदम नहीं रुकें, अब हम दिल्ली की ओर चले।'
'जरूर बेटे ! आगे बढ़ो।'
फौज तो खुश थी कि बिना लड़े जीत हो गई। फौज ने सिकन्दर खां का पीछा किया, वह भागता जा रहा था। उसे लगा कि एक बार तो तलवार टकराये, लोग क्या कहेंगे?
उसने आगरे के बाहर मोर्चे-बन्दी की, मुगल झंडे को ऊंचा किया। हेमचन्द्र ने फौज की एक टुकड़ी भेज दी, मुगल सरदार सिकन्दर खां उजबेक टिक नहीं सका। उसकी आधी फौज मारी गई और वह जान बचाकर भागा।
दिल्ली में तारदीबेग मुगल बादशाहत की ओर से हुकूमत कर रहा था। चौदह साल का अकबर जालन्धर में था, मुगल सेना अफगान सिकन्दरशाह सूर से निपटने के लिए शिवालिक की पहाड़ियों में चक्कर काट रही थी। पर दिल्ली में मुगल फौज कम नहीं थी। तारदीबेग ने किले में सरदारों के साथ बैठकर हालात पर मशविरा किया। सब पर हेमचन्द्र का आतंक छाया हुआ था। कोई कह रहा था कि बादशाह के पास खबर भेजकर इन्तजार करना चाहिए। किसी का ख्याल था कि अली कुली खां शैबानी को जल्द आ जाना चाहिए, तब तक हम किले में इन्तजार करें। किसी ने सलाह दी कि किले में रहकर रात में हेमू की फौज पर छापा मारें, नुकसान पहुंचाते हुए वक्त ले लें। चौथे ने सलाह दी कि मजहब के नाम पर अफगानों को फोड़ना चाहिए।
तारदीबेग इन सभी सलाहों पर गौर करने लगा। एक बार तय किया कि वह जालन्धर खबर भेजकर इन्तजार करे, लेकिन जालन्धर में बादशाह अकबर के साथ बैरम खां है। वह उससे नाखुश है। बादशाह बैरम खां के मुताबिक चलते हैं। बैरम खां से क्या मदद मिलेगी ? इधर हेमू की फौज बढ़ी चली आ रही है, इससे मुकाबला मुश्किल है। लेकिन वह तुर्क है, हेमू से डरना नहीं चाहिए, उसे डट जाना चाहिए। किसी हालत में खैरियत नहीं है, वह क्या करे !
दूसरे दिन खबर मिल गयी कि हेमू की फौज दिल्ली की ओर बढ़ती आ रही है, अब वह न इन्तजार कर सकता था और न हट सकता था। उसने तुगलकाबाद के मैदान में मुकाबला करने का फैसला कर लिया।
तुगलकाबाद के मैदान में दोनों फौजें आमने-सामने आ गयीं, पहले तोपों के गोले ने जंग की शुरुआत की। फिर बरछे और भाले चमकने लगे। मुगल फौज का हरावल हेमचन्द्र की सेना के दाहिने हिस्से पर टूट पड़ा, वह हिस्सा कुछ कमजोर था। मुगलों के हमले से पठान सिपाही हटने लगे। मुगल बढ़े, वे भागने लगे। मुगलों ने पीछा किया, वे होडलपलवल तक जा पहुंचे। अपनी पहली कामयाबी पर तारदीबेग बहत खश था. लेकिन वह हेमचन्द्र की सेना के मध्यभाग पर आक्रमण नहीं कर सका। वह हाथी पर सवार हेमचन्द्र को देखकर साहस जुटा नहीं पा रहा था। हेमचन्द्र दाहिने भाग की कमजोरी को देख परेशान हो रहा था। शीघ्र ही उसने रणनीति निश्चित कर ली। उसने बहादुर खां, गजराजसिंह और विजय वाहन को इशारा किया। तारदीबेग दो तरफ से घेर लिया गया, उस पर दोनों तरफ से प्रहार हुए। तारदीबेग के पैर उखड़ गये।
उसे भागते देखकर मुगल फौज भाग खड़ी हुई। हेमचंद्र ने भागती मुगल फौज का पीछा किया। मुगल फौज भागती चली गयी। फौज की छावनी पर कब्जा हो गया। होडलपलवल से लौटती मुगल टुकड़ी अपनी हार देखकर अचंभित रह गयी। हेमचन्द्र ने इन्हें भी घेर लिया, सभी बन्दी बना लिये गये।
विजयी हेमचन्द्र ने जयघोष के मध्य दिल्ली में प्रवेश किया। विजय सेना 'हेमचन्द्र जिन्दाबाद' का घोष करती हुई प्रवेश कर गयी। दिल्ली की प्रजा ने 'राजा हेमचन्द्र की जय' के उत्साहपूर्ण नारों से विजयवाहिनी का स्वागत किया। फौज के कुछ सिपाही और सरदार 'राजा' शब्द पर चौंक गए। सालारे आजम शादी खां को भी थोड़ा अजीब लगा, लेकिन उन्होंने देखा, सुना और महसूस किया कि दिल्ली का सारा माहौल हेमचन्द्र को अपना रहा है। सभी आदिलशाह को भूल गये हैं, वे तो चुनार के किले में नादिरा का नाच देख रहे होंगे। यहां हेमचन्द्र को रिआया ने अपना लिया है, यह तो एक करिश्मा है हेमचन्द्र का, तकदीर का या मालिक का। वक्त किसे उछाल देगा, कौन बताये। अफगान फौज, अफगान सल्तनत का परचम और राजा हेमचन्द्र की जय-कमाल है !
शादी खां ने देखा कि हेमचन्द्र उनके पैरों पर झुक रहा है, उन्होंने उठाकर हृदय से लगा लिया, और कहा -'हेमचन्द्र ! सचमुच तुम विक्रमाजीत हो। रिआया तुमसे बहुत खुश है ! लगता है कि तेरा हिन्दुस्तान तेरा ही इन्तजार कर रहा है।'
'यह तो हम सबका देश है, चाचा ! यह धरती मादरेवतन है।'
'ठीक कहते हो, बेटे ! इसकी हिफाजत, इज्जत और खुशहाली के लिए तलवार उठाना ही दिलेरी और बहादुरी है। तुम इस कसौटी पर खरे उतर रहे हो, हेमचन्द्र ! अब फतहयाब हेमचन्द्र को किले में चलना है।'
'आपका जैसा हुक्म हो।' हेमचन्द्र ने जवाब दिया।
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