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कविता संग्रह >> बोलना सख्त मना है

बोलना सख्त मना है

पंकज मिश्र अटल

प्रकाशक : बोधि प्रकाशऩ प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16031
आईएसबीएन :9789385942099

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नवगीत संग्रह


अपनी बात को और अधिक विस्तार न देते हुए मैं यहां यह स्पष्ट करना चाहता हूं :: आज के इस वैचारिक और भावनात्मक स्तर के प्रदूषित परिवेश में मूल्यों को पार्थापना के साथ-साथ वैचारिक और संवेदनात्मक स्तरों के परिशोधन की भी महती आवश्यकता है। प्रत्येक कार्य, व्यवहार, आचरण के साथ गणनात्मकता का भाव समीचीन नहीं, जैसा कि आज पग-पग पर झलक रहा है, यह सारी ही स्थितियां मानव मन से लेकर संपूर्ण परिवेश में अजीब सी घुटन को पैदा कर रही हैं जो कि चिंतनीय है। आज लोगों के जीवन और उनके व्यवहार से स्वाभाविकता समाप्त हो गयी है, अपनापन भी खोजना पड़ रहा है। एक नवगीत में मैंने लिखा है
"अपनों में / जाकर अपनापन / पड़ा खोजना।।
किसको अपना कहें / कठिन है/ आज सोचना।।
चेहरों पर/चेहरे रखकर के / सब हमदर्द हुए।"

आज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भी प्रभावित करने की कोशिशें जारी हैं। सच के पैरोकार भी सच सुनने से कतरा रहे हैं। चुप रहने को विवश किया जा रहा है, ऐसे में संग्रह की रचनाएं इसी सत्य के इर्द-गिर्द घूमती हैं और प्रमाणित करती हैं कि 'बोलना सख़्त मना है'।

अंततः अपने इस नवगीत संग्रह 'बोलना सख़्त मना है' के माध्यम से मेरी यही पहल होगी कि मेरे नवगीत एक वैचारिक क्रांति के संवाहक बनकर लोगों को भावनात्मक, संवेदनशील और व्यावहारिक बनने में सहयोग करें।

- पंकज मिश्र 'अटल'


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    अनुक्रम

  1. गीत-क्रम

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