कविता संग्रह >> बोलना सख्त मना है बोलना सख्त मना हैपंकज मिश्र अटल
|
0 |
नवगीत संग्रह
मैं इन्हीं विचारों को कभी अकविता तो कभी नवगीत के माध्यम से अभिव्यक्त करता आया हूं, क्योंकि माध्यम महत्वपूर्ण तो है परंतु उतना नहीं जितना कि वह विचार, वह लक्ष्य या मंतव्य जो समाज को चैतन्यता से पूर्ण कर दे, उसे जाग्रत कर दे और सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ने को बाध्य कर दे।
मैंने अपने नवगीतों में अपने आस-पास जो घटित हो रहा है, जो मैं महसूस कर रहा हूं और जो भोग रहा हूं, उस भोगे हुए यथार्थ को कथ्य रूप में अभिव्यक्ति प्रदान की है। आज कदम-कदम पर वर्जनाएं हैं, मूल्यों की चर्चाएं हैं, परंतु मूल्य नहीं, अपने खोखलेपन और दम्भ को ही पूर्णता मानकर भटकती और बिखरती पीढ़ी है, संवादों और कथनों में तिक्तता और चुभन है, पल-पल जन्मती खीझ और बासीपन का भाव, इस सबके साथ पैर पसारती अति तार्किकता, दम तोड़ती मानवीय भावनाएं, आदर्शों से दूर गुम्फित भीड़, जो निरुद्देश्य भागमभाग में व्यस्त ही नहीं, स्वयं को खोती भी जा रही है, चुकती जा रही है और निरंतर अवसादों में घिरती जा रही है। ऐसे ही अन्यान्य भावों, संवेदनों और विचारों से जन्में हैं मेरे नवगीत।
इन नवगीतों में उन समस्त भावों को उभारने तथा वर्तमान समाज के विद्रूप चित्रों को उकेरने का प्रयास किया गया है। आज जबकि सबकुछ अस्त-व्यस्त है और बिखराव में बदलता जा रहा है तो नवगीत उससे अछूता कैसे रह सकता है। मैंने अपने नवगीतों में इन्हीं उपर्युक्त विषयों को प्रतीकों और बिम्बों के माध्यम से व्यक्त मात्र ही नहीं किया है, अपितु अत्यधिक सरलता और सहजता से वर्णित और विश्लेषित भी किया है।
आज के परिवेश में जिस तरह से स्वार्थपरता दिखावा और बनावटीपन के भाव जन्म ले रहे हैं, उन भावों को व्यक्त करते हुए मैंने लिखा है-
"अब कथन/ देने लगे/मीठी चुभन / पेटेंट होते जा रहे / ये आचरण।"
इसी प्रकार रिश्तों और संबंधों के संदर्भ में भी लिखा है-
"रिश्ते / शब्दकोश में अंकित / व्यवहार हुए सूने / परहेजी/ संबंध हैं बिम्बित / दर्द हुए दूने।"
लोगों के दिखावटी एवं चतुराई पूर्ण व्यवहार के संदर्भ में एक नवगीत में लिखा है-
"मीठी-मीठी / शब्द चाशनी / घोल रहे / औरों की / बातों को / मन में पैन ।"
|
- गीत-क्रम