कविता संग्रह >> नवान्तर नवान्तरदेवेन्द्र सफल
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गीत-कविता का नवान्तरण
अपनी बात
आदिकाल से ही मानव अपनी संवेदनाओं और जीवन-संघर्षों को व्यक्त करने के लिये कविता का सहारा लेता रहा है, जिसका सहज रूप गीत है।
सामाजिक-राजनीतिक पतन, असंतुलित आर्थिक विकास, जाति, धर्म-सम्प्रदायवाद के विष और घर-परिवार के अर्न्तद्वन्द्व ने हमारे वर्तमान परिवेश को बहुत प्रभावित किया है। आधुनिकता की अंधी दौड़ में सामाजिक मर्यादा और मूल्यों का तीव्र क्षरण हुआ है। मैंने जो कुछ भी देखा, समझा-परखा, उन वर्तमान स्थितियों ने मुझे भी झकझोर दिया जिसकी परिणति यह द्वितीय गीत-संग्रह 'नवान्तर' आपके समक्ष प्रस्तुत है।
गीत-कविता-यात्रा के कई पड़ाव आये, किन्तु गीत अपनी विशिष्ट पहचान बनाये हुये सतत गतिशील रहा। गीत समय के साथ-साथ चला है और अपने अनेक उपनामों के साथ ही रचना-विन्यास, बिम्बों-प्रतीकों के माध्यम से नवीनता का आभास कराता रहा है। आज का गीत/नवगीत अपने रूढ़ हो चुके स्वरूप में बदलाव चाहता है। गीत में पुन: नवान्तरण हुआ है। प्रस्तुत गीत-संग्रह 'नवान्तर' के द्वारा मैंने सुधी-विद्वानों तथा शुभचिन्तकों को अपने गीतों से साक्षात्कार का एक छोटा-सा प्रयास किया है।
मेरे प्रथम गीत-संग्रह 'पखेरू गंध के को साहित्यकारों एवं मर्मज्ञ पाठकों का पर्याप्त स्नेह मिला है, इसे मैं स्वयं का सौभाग्य मानता हूँ।
परम श्रद्धेय श्री सिन्दूर जी ने अपनी अतिशय व्यस्तताओं के बावजूद समय निकाल कर मेरे द्वितीय गीत-संग्रह 'नवान्तर में अपने सारगर्भित, भावपूर्ण अभिमत देने के लिए मेरे आग्रह को स्वीकार किया, मैं उनके प्रति हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
प्रतिष्ठित नवगीतकार डॉ० देवेन्द्र शर्मा 'इन्द्र' के प्रति भी मैं अपना विशेष आभार व्यक्त करना चाहूँगा जिन्होंने अपनी अस्वस्थता के बावजूद इस संग्रह पर टिप्पणी देने की कृपा की।
स्मृतिशेष अन्यतम नवगीतकार डॉ० रवीन्द्र भ्रमर और लोकप्रिय गीत - नवगीत कवि डॉ० कुँवर बेचैन के अभिमत मेरे प्रथम गीत-संग्रह से उद्धृत किये जा रहे हैं।
विगत चार वर्षों में मेरे तीन बड़े भाइयों और गत वर्ष स्नेहिल माता जी के निधन ने मुझे मर्मान्तक पीड़ा दी है। कुछ इसी प्रकार के अपरिहार्य कारणों से इस गीत-संग्रह का प्रकाशन देर से हो पा रहा है, फिर भी मुझे हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। संग्रहीत गीतों की कतिपय पंक्तियाँ अगर आपको थोड़ा-सा भी प्रभावित कर जाती हैं, तो मेरे लिये यह नितान्त सुखकर होगा।
- देवेन्द्र सफल
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