कविता संग्रह >> नवान्तर नवान्तरदेवेन्द्र सफल
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गीत-कविता का नवान्तरण
देवेन्द्र 'सफल' के अधिकांश गीत अन्तर्मन के उद्वेलन से स्वतः स्फर्जित हैं। इनमें कृत्रिमता नहीं है। श्वासों का संस्पर्श पाकर, हरे बाँस की वंशी जिस प्रकार पिहक उठती है, कवि की राग-चेतना से 'सफल' के ये गीत फूट निकले होंगे। देवेन्द्र 'सफल' के गीतों की बनावट और बुनावट नितान्त सहज है।
'सफल' का राग-बोध अप्रत्यक्ष न होकर प्रत्यक्ष है। इस कवि की अपनी जीवन स्थितियाँ इसके गीतों में सहजता के साथ मुखरित हुई हैं। 'सफल' की भाषा साफ-सुथरी है और अभिव्यक्तियाँ सपाट न होकर काव्यात्मक हैं।
रेखांकित करने योग्य एक विशेष बात यह है कि देवेन्द्र के गीतों में 'निर्गुणियाँ सन्त-भक्तों-जैसी एकान्त समर्पण भावना' और घनीभूत रागात्मकता के बीज विद्यमान हैं। इस कवि की एक और पहचान है। इसकी लयकारी में लोक-गीतों जैसी अनुगूंज के साथ पाठक को हठात् अपने में समो लेने की क्षमता है।
- डॉ. रवीन्द्र भ्रमर
देवेन्द्र 'सफल' प्रेम के कवि हैं। प्रेम की विभिन्न छवियों एवं प्रतिच्छवियों को उनके गीतों में विशद स्थान मिलता है। उनमें कहीं मिलन है, कहीं वेदना है, कहीं शिकवे-शिकायतें हैं, कहीं समझाना-बुझाना, कहीं प्यास और जलन है, कहीं पुरवाई के ठंडे झौंके, कहीं मौन दृगों के मुखर निमंत्रण हैं, कहीं रिश्तों को यूँ ही जीने का आमंत्रण, कहीं स्मृतियाँ हैं, कहीं आत्म-मुग्धता की स्थिति, कहीं मिसरी-सी-घोलने वाली चितवन की बातें हैं तो कहीं धूमिल होते हुए सपने।
देवेन्द्र ने अपने गीतों में वेदना को ही सर्वाधिक महत्व दिया है। इसलिए वे कहते हैं :
यदि जीवन्त वेदना से मिलना चाहो
मेरे गीतों से अपना परिचय कर लो
'सफल' के गीत कलात्मक दृष्टि से भी सफल और सुन्दर गीत बन पड़े हैं। कारण यह है कि इन गीतों में बहती हुई भाषा का प्रयोग है। कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि शब्द लूंसा गया है, या ठोकर दे रहा है।
कविता चाहे वह किसी भी ‘फार्म' में हो, वह तब ही बड़ी मानी जाती है। जब उसकी पंक्तियाँ उदाहरण देने योग्य बनती हैं। यदि उसमें उद्धत करने योग्य कोई विचार नहीं होता, तो वह केवल तुकबंदी ही कही जायगी। प्रसन्नता की बात है कि कवि 'सफल' ने इस मोर्चे पर भी अपने गीतों की अस्मिता को बचाए रखा है। उनके गीतों में सारगर्भित पंक्तियाँ बड़ी मात्रा में
- डॉ. कुँअर बेचैन
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