नई पुस्तकें >> समाधान समाधानलालजी वर्मा
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भारत-पाक युद्ध 1971 के परिप्रेक्ष्य में उपन्यास
सरला के एक मामा हुआ करते थे जो पुलिस में ऊँचे पद पर अधिकारी थे। बड़े ही दबंग पुलिस अफसरों में उनकीगिनती होती थी। कहा जाता है कि उस एरिया के सारे बदमाश, डकैत इत्यादि उनसे बहुत भय खाते थे, और देखते ही देखते चोरी, डकैती, राहजनी इत्यादि की घटनाएँ नहीं के बराबर हो गयी थीं। कॉलरा का जब टीका अभियान चलता था तो उनके साथ काम करने वाले, ऑफिस में या घर में भाग-भाग कर छुपने की कोशिश करते पर सरला के मामा सभी को निकल बाहर करने का हुक्म देते और सुनिश्चित करते कि टीका सभी को लगा यानहीं। सभी कुओं में पोटाश डाला जाता। पर मृत्यु दर कम भले ही हो गाँव के करीब-करीब सभी घरों में किसी न किसी को कॉलरा अवश्य ही हो जाता था। कुछ उपचार से ठीक भी होजाया करते थे। उस समय सरला की बचपन की यादें ताजा हो गयी थीं। इसलिए उसने मेघ और बादल को दोबारा आगाह किया।
“हाँ, माँ, देख-परख कर लाऊँगा।” मेघ कहते हुए बाहर की ओर निकला, साथ में ही बादल। दोनों भाइओं में अनुपम प्यार था। जब भी मौक़ा मिलता साथ-साथ ही रहते थे। वैसे अलग-अलग कॉलेज मेंपढने के कारण दोनों को साथ रहने का मौक़ा कम ही मिलता था। इसलिए जब मौक़ा मिला तो क्यों साथ छोड़ें? एक दूसरे की परछाईं बने रहते थे।
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