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रुकतापुर

पुष्यमित्र

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15544
आईएसबीएन :9789389598674

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रुकतापुर

यह किताब एक सजग-संवेदनशील पत्रकार की डायरी है, जिसमें उसकी ‘आँखों देखी’ तो दर्ज है ही, हालात का तथ्यपरक विश्लेषण भी है। यह दिखलाती है कि एक आम बिहारी तरक्की की राह पर आगे बढ़ना चाहता है पर उसके पाँवों में भारी पत्थर बँधे हैं, जिससे उसको मुक्त करने में उस राजनीतिक नेतृत्व ने भी तत्परता नहीं दिखाई, जो इसी का वादा कर सत्तासीन हुआ था। आख्यानपरक शैली में लिखी गई यह किताब आम बिहारियों की जबान बोलती है, उनसे मिलकर उनकी कहानियों को सामने लाती है और उनके दुःख-दर्द को सरकारी आँकड़ों के बरअक्स रखकर दिखाती है। इस तरह यह उस दरार पर रोशनी डालती है जिसके एक ओर सरकार के डबल डिजिट ग्रोथ के आँकड़े चमचमाते दावे हैं तो दूसरी तरफ वंचित समाज के लोगों के अभाव, असहायता और पीड़ा की झकझोर देने वाली कहानियाँ हैं।

इस किताब के केन्द्र में बिहार है, उसके नीति-निर्माताओं की 73 वर्षों की कामयाबी और नाकामी का लेखा-जोखा है, लेकिन इसमें उठाए गए मुद्दे देश के हरेक राज्य की सचाई हैं। सरकार द्वारा आधुनिक विकास के ताबड़तोड़ दिखावे के बावजूद उसकी प्राथमिकताओं और आमजन की जरूरतों में अलगाव के निरंतर बने रहने को रेखांकित करते हुए यह किताब जिन सवालों को सामने रखती है, उनका सम्बन्ध वस्तुतः हमारे लोकतंत्र की बुनियाद है।

क्रम

भूमिका    9

जा झाड़ के, मगर कैसे   
रोजी-रोजगार के मामले में ठहरा हुआ प्रदेश    13

घोघो रानी, कितना पानी
जल प्लावन और जल संकट में फँसी व्यवस्था    45

दूध न बताशा, बौवा चले अकासा
कुपोषण, अकाल मृत्यु और बदहाल चिकित्सा-व्यवस्था    87

जय-जय भैरवी
शोषण की इंतिहा और अदालती लड़ाई लड़ती लड़कियाँ    115

केकरा से करीं अरजिया हो सगरे बटमार
खेती, कारोबार और रोजगार का बंटाधार    145

हमरे गरीबन के झोपड़ी जुलुमवा
भूमिहीनता की समस्या और ऑपरेशन दखल दिहानी    189

एमए में लेके एडमिशन, कम्पिटीशन देता
पढ़ाई, तैयारी, बेरोजगारी और पलायन    213

सवाल तो बनता है!    223

परिशिष्ट    233

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