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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

“श्योर...बोलो क्या काम है?"

"मुझे पच्चीस हजार रुपया चाहिये।” रूबी ने कहा।

"क्या...प...च्चीस...है...जा.......।” विकास चौंक उठा। उसको सारा शरीर पसीने से नहीं उठा।

"क्या हुआ चौंक क्यों उठे?" रूबी के चेहरे पर कुटिल मुस्कुराहट थी।

"तुम्हें इसका क्या करना है?”

"इससे तुम्हें क्या लेना है?"

“मुझसे ही रुपया मांग रही हो और पूछती हो मुझे क्या लेना है?" विकास के चेहरे पर क्रोध की झलक थी।

"मैं तुमसे भीख नहीं मांग रही हूं...ये तो एक सौदा है।"

“सौदा...कैसी सौदा?"

"सुनना चाहते हो।”

“हाँ...हाँ...क्यों नहीं...भला पच्चीस हजार रुपया कोई कीमत रखता है...बिना सोचे समझें मैं कैसे दे सकता हूं।"

"दो मिनट रुको मैं अभी आई।” रूबी ने कहा और दूसरे कमरे की तरफ चल दी।

विकास ने एक गिलास में व्हिस्की डाली और बिना सोडवा मिलाये ही पी गयी। उसका दिमाग सांय-सांय कर रहा था। पच्चीस हजार कोई कम कीमत नहीं रखता वैसे तो आज तक विकास ने पैसा पानी की तरह बहाया था पर एक बार में पच्चीस हजार रुपया। किसी को कैसे दिया जा सकता था।

विकास ने देखा रूबी के हाथ में एक लिफाफा था जिसे उछालती हुई रूबी चली आ रही थी पर उस लिफाफे का रहस्य विकास की समझ में नहीं आ सका था।

रूबी ने लिफाफा विकास की तरफ उछाल दिया फिर बोली, "विकास लिफाफे में वो रहस्य है जिसे अभी तुम नहीं जानते...पर देखते ही पहचान जाओगे...कि मैंने गलत कीमत नहीं लगाई है...बल्कि कुछ कम ही है जो दोस्ती के नाम पर कम की गई है।”

विकास ने जैसे ही लिफाफी खोला उसके हाथ बुरी तरह से कांप उठे। उसमें अपर ही विकास की फोटो थी साथ में कोई युवती थी पर युवती की शक्ल साफ नजर नहीं आ रही थी पर विकास को कोई दूर से भी पहचान सकता था फिर विकास एक के बाद एक हर फोटो देखता चला गया। हर फोटो में विकास किसी लड़की के साथ अश्लील हरकत करते हुये दिखाई दे रहा था पर लड़की की शक्ल किसी में भी सही नहीं थी। हर फोटो में वही लड़की नजर आ रही थी...विकास का सारा शरीर पसीने से तर था जबकि इतनी गर्मी नहीं थी।

विकास अपने को बड़ा होशियार समझता था। उसने पता नहीं कितनों को अपने जाल में फांसकर बरबाद किया था पर उसने आज तक यह नहीं सोचा था कि कभी वह भी एक लड़की के हाथों इतनी बड़ी शिकस्त खायेगा...आज वह बुरी तरह से रूबी के जाल में फंस गया था। फोटो देखते-देखते ही विकास के चेहरे पर कठोर भाव दौड़ गये फिर एकाएक ही उसने फोटो के टुकड़े-टुकड़े कर डाले।

"विकास तुमने इन्हें क्यों फाड़ डाला?" रूबी ने कहा।

"नहीं इन्हें एलबम में सजाता।” विकास का चेहरा क्रोध से लाल था।

"तुम क्या समझते हो...इन्हें फाड़कर तुमने अपने फंसने के सबूत को मिटा डाला...लेकिन याद रखो मेरे पास इसके निगेटिव्स हैं...जिनसे मैं चाहूं तो हजारों फोटो बनवा सकती हूं।" रूबी के चेहरे पर भी क्रोध उभर आया था।

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