सामाजिक >> अजनबी अजनबीराजहंस
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राजहंस का नवीन उपन्यास
“भई वो तो उसकी ड्यूटी है।" हंसते हुये विकास ने कहा।
“तुमने तो बैठने को कहना नहीं है परन्तु हम भी एक नम्बरके बेशर्म हैं।” कहते हुये वह सोफे पर पसर गई।
"अरे इसमें कहने की क्या बात है, आई हो तो बैठोगी ही।”
“मतलब मुझे आना नहीं चाहिये था।”
"मैंने ऐसा तो नहीं कहा।”
तभी सामने से सुनीता आती हुई दिखाई दी। असल में सुनीता ने अपने कमरे में रूबी को देख लिया था। सुनीता विकास की हर गतिविधि पर ध्यान रखती थी। वह उसी प्रकार लता तक पहुंचना चाहती थी परन्तु आजकल लता आफिस भी नहीं जा रही थी। सुनीता ने रूबी का चेहरा नहीं देखा था वह लेता समझ कर ही नीचे उतर आई थी परन्तु सामने लता नहीं थी परन्तु जब आ
ही गई थी तो लौटना भी उचित नहीं था।
"विकास यह कौन है?" रूबी ने सुनीता को आते देखा तो पूछा।
“यह मेरी पत्नी सुनीता है।” फिर विकास ने सुनीता से कहा-“सुनीता यह मेरी कालेज की फ्रेण्ड है मिस रूबी।"
सुनीता ने हाथ जोड़ दिये और वहीं बैठ गई।
“विकास तुम्हारी पत्नी का जवाब नहीं...लाखों में एक है।” रूबी ने सुनीता को देखते हुये कहा।
“शुक्रिया।"
"परन्तु तुम निकले बड़े धोखेबाज।”
"क्या?” विकास रूबी के शब्दों से चौंक उठा।
“और क्यों चुपके-चुपके शादी कर ली और किसी को बुलाया भी नहीं।"
"वो...वो डैडी ने जल्दी में शादी तय कर दी...इतना मौका ही नहीं मिला कि किसी को बुला पाता।"
“अब कब पार्टी दे रहे हो?"
“अभी लो।” फिर सुनीता से कहा-"बी के लिये रामू। काका से कह दो।"
सुनीता उठकर चली गई।
सुनीता के जाने पर रूबी ने कहा-“विकास मैं तुमसे कुछ बातें करना चाहती हूं।"
"कैसी बातें?"
"तुम्हारी पत्नी के सामने नहीं की जा सकतीं...वैसे मैं तो करे सकती हैं परन्तु तुम्हारे लिये सही नहीं होगा।"
"तब।”
"तुम बताओ कहाँ मिलना चाहोगे?"
"क्लब में।"
“कब?”
"कल शाम सात बजे।”
"ओ० के०।”
"ओ० के०।” विकास ने कहा और रूबी तेज कदमों से बाहर निकल गई।
विकास रूबी के फ्लैट पर ठीक सात बजे पहुंच रूबी विकास को बैडरूम में ले आयी और पूछा-“विदास...क्या पियोगे?"
“जो पिलाओगी...बन्दा तो वही पीने को तैयार है।”
रूबी ने अपनी आया को बुलाया और पीने का सामान लाने का आर्डर दिया।
“विकास पीने से पहले वो बात कर ली जाये...जिसके लिये तुम्हें यहाँ बुलाया है।"
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