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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...

अंहिसा देवी का साक्षात्कार


मुझे तो किसानो कीहालत की जाँच करनी थी। नील के मालिको के विरुद्ध जो शिकायते थी, उनमें कितनी सचाई है यह देखना था। इस काम के लिए हजारों किसानो से मिलने कीजरूरत थी। किन्तु उनके संपर्क में आने से पहले मुझे यह आवश्यक मालूम हुआ कि मैं नील के मालिको की बात सुन लूँ और कमिश्नर से मिल लूँ। मुझे दोनोंको चिट्ठी लिखी।

मालिको के मंत्री के साथ मेरी जो मुलाकात हुई, उसमें उसने साफ कह दिया कि आपकी गिनती परदेशी में होती है। आपको हमारे औरकिसानो के बीच दखल नहीं देना चाहिये। फिर भी अगर आपको कुछ कहना हो, तो मुझे लिखकर सूचित कीजिये। मैंने मत्री से नम्रतापूर्वक कहा कि मैं अपने कोपरदेशी नहीं मानता और किसान चाहे तो उनकी स्थिति की जाँच करने का मुझे पूरा अधिकार है। मैं कमिश्नर साहब से मिला। उन्होंने मुझे धमकाना शुरू करदिया और मुझे सलाह दी कि मैं आगे बढ़े बिना तिरहुत छोड़ दूँ।

मैंने सारी बाते साथियो को सुनाकर कहा कि संभव है सरकार मुझे जाँच करने सेरोकेऔर जेल जाने का समय मेरी अपेक्षा से भी पहले आ जाये। अगर गिरफ्तारी होनी ही है, तो मुझे मोतीहारी में और संभव हो तो बेतिया में गिरफ्तार होनाचाहिये और इसके लिए वहाँ जल्दी से जल्दी पहुँच जाना चाहिये।

चम्पारनतिरहुत विभाग का एक जिला है और मोतीहारी इसका मुख्य शहर। बेतिया के आसपासराजकुमार शुक्ल का घर था और उसके आसपास की कोठियो के किसान ज्यादा-से-ज्यादा कंगाल थे। राजकुमार शुक्ल को उनकी दशा दिखाने का लोभ थाऔर मुझे अब उसे देखने की इच्छा थी।

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