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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...


ब्रजकिशोरबाबूको मैंने बहुत ठंडे दिमाग का पाया। उन्होंने शान्ति से उत्तर दिया, 'हमसे जो मदद बनेगी, हम देंगे। लेकिन हमें समझाइये कि आप किस प्रकार की मददचाहते है।'

इस बातचीत में हमने सारी रात बिता दी। मैंने कहा, 'मुझे आपकी वकालत की शक्ति का कम ही उपयोग होगा। आपके समान लोगों से तोमैं लेखक और दुभाषिये का काम लेना चाहूँगा। मैं देखता हूँ कि इसमे जेल भी जाना पड़ सकता है। मैं इसे पसन्द करूँगा कि आप यह जोखिम उठाये। पर आप उसेउठाना न चाहे, तो भले न उठाये। वकालत छोड़कर लेखक बनने और अपने धंधे को अनिश्चित अविधि के लिए बन्द करने की माँग करके मैं आप लोगों से कुछ कमनहीं माँग रहा हूँ। यहाँ कि हिन्दी बोली समझने में मुझे कठिनाई होती है। कागज-पत्र सब कैथी में या उर्दू में लिखे होते है, जिन्हे मैं नहीं पढ़सकता। इनके तरजुमे की मैं आपसे आशा रखता हूँ। यह काम पैसे देकर कराना हमारे बस का नहीं है। यह सब सेवाभाव से और बिना पैसे के होना चाहिये।'

ब्रजकिशोरबाबू समझ गये, किन्तु उन्होंने मुझसे और अपने साथियो से जिरह शुरू की। मेरीबातो के फलितार्थ पूछे। मेरे अनुमान के अनुसार वकीलों को किस हद तक त्याग करना चाहिये, कितनो की आवश्यकता होगी, थोड़े-थोड़े लोग थोड़ी-थोड़ी मुद्दतके लिए आवे तो काम चलेगा या नहीं, इत्यादि प्रश्न मुझसे पूछे। वकीलों से उन्होंने पूछा कि वे कितना त्याग कर सकते है।

अन्त में उन्होंने अपना यह निश्चय प्रकट किया, 'हम इतने लोग आप जो काम हमे सौपेगे, वह करदेने के लिए तैयार रहेगे। इनमे से जितनो को आप जिस समय चाहेगे उतने आपके पास रहेंगे। जेल जाने की बात नई है। उसके लिए हम शक्ति-संचय करने की कोशिशकरेंगे।'

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