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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...


मैंने उनसे चम्पारन की थोडी कथी सुनी। अपनेरिवाज के अनुसार मैंने जवाब दिया, 'खुद देखे बिना इस विषय पर मैं कोई राय नहीं दे सकता। आप कांग्रेस में बोलियेगा। मुझे तो फिलहाल छोड़ ही दीजिये।'राजकुमार शुक्ल को कांग्रेस की मदद की तो जरूरत थी ही। ब्रजकिशोरबाबू कांग्रेस में चम्पारन के बारे में बोले और सहानुभूति सूचक प्रस्ताव पासहुआ।

राजकुमारशुक्ल प्रसन्न हुए। पर इतने से ही उन्हें संतोष नहुआ। वे तो खुद मुझे चम्पारन के किसानो के दुःख बताना चाहते थे। मैंने कहा, 'अपने भ्रमण में मैं चम्पारन को भी सम्मिलित कर लूँगा और एक-दो दिनवहाँ ठहरूँगा।'

उन्होंने कहा, 'एक दिन काफी होगा। नजरो से देखिये तो सही।'

लखनऊ से मैं कानपुर गया था। वहाँ भी राजकुमार शुक्ल हाजिर ही थे। 'यहाँ सेचम्पारन बहुत नजदीक है। एक दिन दे दीजिये। '

'अभी मुझे माफ कीजिये। पर मैं चम्पारन आने का वचन देता हूँ।' यह कहकर मैंज्यादा बंध गया।

मैं आश्रम गया तो राजकुमार शुक्ल वहाँ भी मेरे पीछे लगे ही रहे। 'अब तो दिनमुकर्रर कीजिये।' मैंने कहा, 'मुझे फलाँ तारीख को कलकत्ते जाना है। वहाँ आइये और मुझे ले जाईये।'

कहा जाना, क्या करना और क्या देखना, इसकी मुझे कोई जानकारी न थी। कलकत्ते में भूपेन्द्रबाबू के यहाँ मेरेपहुँचने के पहले उन्होंने वहाँ डेरा डाल दिया था। इस अपढ़, अनगढ परन्तु निश्चयवान किसान ने मुझे जीत लिया।

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