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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...

नील का दाग


चम्पारन जनक राजा की भूमि है। जिस तरह चम्पारन में आम के वन है, उसी तरह सन् 1917में वहाँ नील के खेत थे। चम्पारन के किसान अपनी ही जमीन के 3/20 भाग में नील की खेती उसके असल मालिको के लिए करने को कानून से बंधे हुए थे। इसेवहाँ 'तीन कठिया' कहा जाता था। बीस कट्ठे का वहाँ एक एकड़ था और उसमें से तीन कट्ठे जमीन में नील बोने की प्रथा को 'तीन कठिया' कहते थे।

मुझे यह स्वीकार करना चाहिये कि वहाँ जाने से पहले मैं चम्पारन का नाम तक नहींजानता था। नील की खेती होती है, इसका ख्याल भी नहीं के बराबर था। नील की गोटियाँ मैंने देखी थी, पर वे चम्पारन में बनती है और उनके कारण हजारोंकिसानो को कष्ट भोगना पड़ता है, इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं थी।

राजकुमार शुक्ल नामक चम्पारन के एक किसान थे। उन पर दुःख पड़ा था। यह दुःख उन्हेंअखरता था। लेकिन अपने इस दुःख के कारण उनमें नील के इस दाग को सबके लिए धो डालमे की तीव्र लगन पैदा हो गयी थी। जब मैं लखनऊ कांग्रेस में गया, तोवहाँ इस किसान ने मेरा पीछा पकड़ा। 'वकील बाबू आपको सब हाल बतायेंगे' -- ये वाक्य वे कहते जाते थे और मुझे चम्पारन आने का निमंत्रण देते जाते थे।

वकील बाबू से मतलब था, चम्पारन के मेरे प्रिय साथी, बिहार के सेवा जीवन केप्राण ब्रजकिशोर बाबू से। राजकुमार शुक्ल उन्हें मेरे तम्बू में लाये। उन्होंने काले आलपाका की अचकन, पतलून वगैरा पहन रखा था। मेरे मन पर उनकीकोई अच्छी धाप नहीं पड़ी। मैंने मान लिया कि वे भोले किसानो को लूटने वाले कोई वकील साहब होगे।

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