लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

160 पाठक हैं

my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...


भ्रमण आरम्भ करने सेपहले मुझे वाइसरॉय से मिल लेना उचित मालूम हुआ। उन्होंने तुरन्त ही मुझे मिलने की तारीख भेजी। उस समय मि. मेंफी, अब सर जॉन मेंफी के साथ मेराअच्छा सम्बन्ध स्थापित हो गया। लार्ड चेम्सफर्ड के साथ संतोषजनक बातचीत हुई। उन्होंने निश्चय पूर्वक तो कुछ न कहा, पर मुझे उनकी मदद की आशा बंधी।

भ्रमण का आरम्भ मैंने बम्बई से किया। बम्बई में सभा करने का जिम्मा मि. जहाँगीर पिटीट ने अपने सिर लिया। इम्पीरियल सिटिजनशिपएसोसियेशन के नाम से सभा हुई। उसमें डॉ. रीड, सर लल्लूभाई शामलदास, मि. नटराजन आदि थे। मि. पिटीट तो थे ही। प्रस्ताव में गिरमिट प्रथा बन्द करनेकी विनती करनी थी। प्रश्न यह था कि वह कब बन्द की जाय? तीन सुझाव थे, 'जितनी जल्दी हो सके', 'इकतीसवीं जुलाई तक' और 'तुरन्त'। इकतीसवीम जुलाईका मेरा सुझाव था। मुझे तो निश्चित तारीख की जरूरत थी, ताकि उस अवधि में कुछ न हो तो यह सोचा जा सके कि आगे क्या करना है या क्या हो सकता है। सरलल्लूभाई का सुझाव 'तुरन्त' शब्द रखने का था। उन्होंने कहा, 'इकतीसवीं जुलाई की अपेक्षा तुरन्त शब्द अधिक शीध्रता-सूचक है।' मैंने समझाने काप्रयत्न किया कि जनता 'तुरन्त' शब्द को नहीं समझ सकती। जनता से कुछ काम लेना हो तो उसके सामने निश्चयतात्मक शब्द होना चाहिये। 'तुरन्त' का अर्थतो सब अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार करेंगे। सरकार उसका एक अर्थ करेंगी, जनता दूसरा। 'इकतीसवीं जुलाई' का अर्थ सब एक ही करेंगे और इस तारीख तर मुक्ति नमिली तो हमे क्या कदम उठाना चाहिये, सो हम सोच सकेंगे। यह दलील डॉ. रीड के गले तुरन्त उतर गयी। अन्त में सर लल्लूभाई को भी 'इकतीसवीं जुलाई' पसन्द आगयी और प्रस्ताव में यह तारीख रखी गयी। सार्वजनिक सभा में यह प्रस्ताव पेश किया गया और सर्वत्र 'इकतीसवीं जुलाई' की सीमा अंकित हुई।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book