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उपन्यास >> दीक्षा

दीक्षा

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14995
आईएसबीएन :81-8143-190-1

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दीक्षा

बालक शत को गोद में लिए हुए गौतम बड़ी देर तक चुपचाप, धीरे-धीरे टहलते रहे और सोचते रहे। कुटिया में कोई कुछ नहीं बोला। शत आंखें बंद किए, उर्नीदा-सा पिता की गोद में शांत पड़ा रहा। अहल्या छोटे-मोटे घरेलू काम करती रही। काफी देर के पश्चात् गौतम ने अनुभव किया कि वे स्वयं दिन-भर की शारीरिक तथा मानसिक व्यस्तता के कारण, काफी थके हुए हैं, और उनका शरीर आराम चाहता है। उनकी आंखें विशेष रूप से थकी हुई थीं, यह कदाचित् दिन-भर के कार्य से मुक्त होकर, दीपक के प्रकाश में अधिकाधिक ग्रन्धावलोकन के कारण हुआ था। उनकी आंखों ने कम प्रकाश में पढ़ने-लिखने में सदा असहयोग

किया था। यही कारण था कि वे सूर्य के प्रकाश में ही अध्ययन का कार्य कर लेते थे। अंधकार होने के पश्चात् वार्तालाप अथवा चिंतन-मनन ही उन्हें अधिक सुविधाजनक लगता था। किंतु आज बाध्य होकर उन्होंने आंखों पर अधिक परिश्रम का भार डाला था। और इस समय आंखें बंद होती-सी लग रही थी।

इधर शत को उन्होंने बहुत दिनों के पश्चात् गोद में लिया था। वह अब काफी बड़ा हो गया था। उसे अधिक देर तक गोद में उठारा-उठाए फिरना उनकी शारीरिक क्षमता से बाहर था। वैसे भी शत सो गया था, अब उसे बिस्तर पर डाल देना चाहिए था।

"इसका बिस्तर ठीक कर दो अहल्या।'' उन्होंने बहुत धीरे से कहा, ताकि शत उनकी आबाज से जाग न जाए।

'बिस्तर ठीक कर दिया है।'' अहल्या भी उसी प्रकार धीरे से बोली। गौतम बहुत धीरे-धीरे आगे बड़े और बिस्तर के पास पहुंचकर शत को अपने शरीर से लगाए हुए ही झुके और उन्होंने शत को बिस्तर पर लिटाया, शत ने आंखें खोल दीं, "मां!''

"यह तो जाग गया!'' गौतम हताश हो गए।

अहल्या ने आकर, तुरन्त शत को उठा लिया। गोद में आकर थोड़ी देर तो बालक कुनमुनाया पर फिर शांत होकर सो गया। अहल्या ने उसे बिस्तर पर सुलाने का प्रयत्न किया, तो वह पुनः जाग उठा, "मां!''

"ज्वर में है।'' गौतम बोले, "लगता है, गोद में ही सोएगा।'' अहल्या ने उसे पुनः गोद में ले लिया। गौतम अपने बिस्तर पर लेट गए। अत्यधिक थके होने पर भी वह सोना नहीं चाह रहे थे। अहल्या भी थकी हुई थी, और बालक ज्वर में था। वह सो गए, तो वह अकेली, अस्वस्थ बालक को कैसे संभालेगी। यदि शत रात-भर बिस्तर में न सोया तो अहल्या कब तक गोद में लिए बैठी रहेगी। दोनों मिलकर, बच्चे को संभालें तो एक व्यक्ति का बोझ कुछ हलका हो सकता था-किंतु वह स्वयं कितने थके हुए थे।

तभी अहल्या ने एक बार और शत को बिस्तर पर लिटाने का प्रयत्न किया; और शत ने पुनः आंखें खोलकर कहा, "मां!''

"लाओ एक बार मुझे दे दो।" गौतम साहस कर, बिस्तर से उठे। किंतु अहल्या ने शत उन्हें नहीं दिया, ''आप सो जाएं, स्वामि! दिन-भर के थके हैं, कल प्रातः भी आपको जल्दी उठना है। आप सो जाएं मैं शत को गोद में सुलाए रखूंगी...।''

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    अनुक्रम

  1. प्रथम खण्ड - एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. द्वितीय खण्ड - एक
  13. दो
  14. तीन
  15. चार
  16. पांच
  17. छः
  18. सात
  19. आठ
  20. नौ
  21. दस
  22. ग्यारह
  23. बारह
  24. तेरह

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