योग >> योग निद्रा योग निद्रास्वामी सत्यानन्द सरस्वती
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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।
मनुष्य के स्वभाव को समझना
योग निद्रा के अभ्यास में यह आवश्यक है कि शिक्षक साधक के मन एवं उसके विचारों से भलीभाँति परिचित हो। ताकि अभ्यास के दौरान उसे उसके विचारानुकूल सुझाव दिये जा सकें। सुझाव कितने ही अच्छे और उच्चादर्श स्वरूप हों, किन्तु व्यक्ति का स्वभाव यदि उन आदर्शों के विपरीत है तो वह उन आदेशों को नहीं मानेगा और विद्रोही हो उठेगा।
जन्म से ही प्रत्येक व्यक्ति एक अलग प्रकृति लेकर पैदा होता है, जिसे वह स्वयं भी नहीं बदल सकता। योग में इसे 'स्वभाव' कहा गया है। मनुष्य की आदतें, धर्म आदि तो बदले जा सकते हैं, किन्तु उसका स्वभाव नहीं बदला जा सकता। यह स्वभाव व्यक्ति के जीवन के साथ जुड़ा रहता है, जो मृत्युपर्यन्त व्यक्ति की सफलता-असफलता का कारण बनता है।
व्यक्ति के स्वभाव को समझने के लिए निरंतर उसके व्यवहार का निरीक्षण करना होगा, बुद्धि का नहीं। प्रौढ़ एवं जवान व्यक्तियों के ऊपर शिक्षा का इतना ज्यादा असर है कि उनके व्यवहार से उनके स्वभाव को पहचानना सरल नहीं है। हाँ, बच्चों में स्वभावतः स्वाभाविकता रहती है। अत: योग निद्रा का अभ्यास उनके लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
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