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योग निद्रा

स्वामी सत्यानन्द सरस्वती

प्रकाशक : योग पब्लिकेशन्स ट्रस्ट प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :320
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 145
आईएसबीएन :0

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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।


अनुभवों को संभालना



मेरी राय में पागलपन कोई वीमारी नहीं है। यह मस्तिष्क के विकास की एक प्रक्रिया है। पागलपन उस अनुभव के प्रतिक्रियास्वरूप होता है जिसको मनुष्य संभालने में असफल रहा है। भारतवर्ष के कई संत व योगी पागलों की तरह जीवन व्यतीत करते देखे गये हैं। ग्रीस में भी इस प्रकार के योगियों का उल्लेख आया है। एक योगी और पागल में इतना ही अंतर है कि एक ने अपने अनुभवों को अच्छी तरह सुलझा लिया है, जबकि दूसरा उसे समझने में असफल रहा है और पागलखाने में शरण पा रहा है। भारतवर्ष में कई ऐसे पागल हैं जो अपने को संभाले हुए हैं, लेकिन पश्चिम के कई योगी आपे से बाहर हो गये हैं। ऐसी समस्याओं को योग निद्रा द्वारा सुलझाया जा सकता है और व्यक्ति अपने को जानने व अपने व्यक्तित्व को निखारने में पुनः सफल हो सकता है।

इस प्रकार मन की अवस्था एक मोटरकार जैसी है। अगर इसे भलीभाँति नहीं चलाया गया तो दुर्घटना की संभावना रहती है। एक कुशल ड्राइवर अच्छी तरह जानता है कि कार हो अथवा ट्रक, उसे कैसे सड़क पर दौड़ाया जाता है। वैसे तो योग निद्रा का अभ्यास मन को तनाव से मुक्त कर विश्राम देने के लिए है, किन्तु कभी-कभी यह बहुत गहराई में चला जाता है और अंतर के पट खोल देता है। योग निद्रा का असली पक्ष तो अंतरपट को खोलकर चिदानन्द की प्राप्ति ही है।

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