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योग निद्रा

स्वामी सत्यानन्द सरस्वती

प्रकाशक : योग पब्लिकेशन्स ट्रस्ट प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :320
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 145
आईएसबीएन :0

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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।


असाधारण इंद्रियात्मक अनुभव



व्यक्ति के सोचने-विचारने की शक्ति सीमित होती है। इन सीमित शक्तियों में रहकर वह मन के अन्य स्तरों से अपरिचित ही रहता आया है। कभी-कभी योग निद्रा में अवचेतन मन के गहन स्तरों से सम्पर्क होता है। तब हम प्रमस्तिष्कीय परिपथों में सुषुप्त प्रतिभाओं का जागरण कर सकते हैं।

जो देखने योग्य बाह्य वस्तुएँ हैं, उन्हें सभी लोग देख सकते हैं। यह एक दृष्टिगत चेतनता है अथवा पदार्थों का अनुभव है, जैसे, फूलों की महक, ध्वनि का सुनना अथवा खास प्रकार के स्वाद का अनुभव। ये सभी इन्द्रियजन्य अनुभव हैं। इनके लिए भी हमें उस वस्तु को देखने व पहचानने का ज्ञान होना आवश्यक है। जैसे फूल न हो तो हमारी आँखें उसे देख नहीं पायेंगी। किन्तु यदि फूल को देखा हुआ हो तो फूल के नाम से फूल की एक तस्वीर व्यक्ति बंद आँखों से भी खींच सकता है। लेकिन योग निद्रा में इससे भी अभूतपूर्व अनुभव का परिचय होता है। जो वस्तु हमने नहीं देखी है, हम उसको भी अपने मन की आँखों से देख लेते हैं। इसे ही अभूतपूर्व अनुभव कहते हैं। मन की इन परतों के भीतरी ज्ञान से परिचय हो जाने पर अंधा देख सकता है और बहरा सुन सकता है। भक्तिकाल के कवि सूरदास इसके सशक्त प्रमाण हैं।

मस्तिष्क के कुछ केन्द्रों में ये अभूतपूर्व अनुभव के केन्द्र शिथिल पड़े रहते हैं। जब व्यक्ति ध्यान व योग निद्रा द्वारा इन केन्द्रों की तह तक पहुँच जाता है तब उसका परिचय उन अनुभवों से होता है, जिन्हें विज्ञान में अलौकिक माना गया है। इन आंतरिक अनुभवों को इंद्रजाल, माया या मृगमरीचिका कहकर टाला नहीं जा सकता है। एक बार एक व्यक्ति मेरे कमरे में आया और कहने लगा कि मुझे चंदन की गंध आ रही है। वहाँ चंदन की सुगंध नहीं थी, लेकिन मैंने उसके अनुभव को नकारा नहीं, क्योंकि उस विशेष समय में उसके मस्तिष्क का कोई केन्द्र जाग्रत हो गया था।

इस प्रकार के अलौकिक अनुभव के केन्द्र मस्तिष्क में विशिष्ट केन्द्रों के नाम से जाने जाते हैं। ये विशिष्ट स्थान अत्यंत शक्तिशाली होते हैं। इन केन्द्रों का कर्मों से कोई सम्बन्ध नहीं रहता है। ऐसे अद्भुत अलौकिक अनुभव के केन्द्र प्रत्येक व्यक्ति में सोये रहते हैं। इन्हें योगी, संत-महात्मा ही पहचान पाते हैं अथवा फिर कोई पागल व्यक्ति ही इस शक्ति को प्राप्त कर सकता है।

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