सदाबहार >> गोदान गोदानप्रेमचंद
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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...
‘मैं तो अब यहाँ नहीं ठहर सकता। खतरनाक जगह है।’
‘एकाध शिकार तो मार लेने दीजिए। खाली हाथ लौटते शर्म आती है।’
‘आप मुझे कृपा करके कार के पास पहुँचा दीजिए, फिर चाहे तेंदुए का शिकार कीजिए या चीते का।’
‘आप बड़े डरपोक हैं मिस्टर खन्ना, सच।’
‘व्यर्थ में अपनी जान खतरे में डालना बहादुरी नहीं है।’
‘अच्छा तो आप खुशी से लौट सकते हैं।’
‘अकेला?’
‘रास्ता बिलकुल साफ है।’
‘जी नहीं। आपको मेरे साथ चलना पड़ेगा।’
राय साहब ने बहुत समझाया; मगर खन्ना ने एक न मानी। मारे भय के उनका चेहरा पीला पड़ गया था। उस वक्त अगर झाड़ी में से एक गिलहरी भी निकल आती, तो वह चीख मारकर गिर पड़ते। बोटी-बोटी काँप रही थी। पसीने से तर हो गये थे! राय साहब को लाचार होकर उनके साथ लौटना पड़ा।
जब दोनों आदमी बड़ी दूर निकल आये, तो खन्ना के होश ठिकाने आये। बोले–खतरे से नहीं डरता; लेकिन खतरे के मुँह में उँगली डालना हिमाकत है।
‘अजी जाओ भी। जरा-सा तेंदुआ देख लिया, तो जान निकल गयी।’
‘मैं शिकार खेलना उस जमाने का संस्कार समझता हूँ, जब आदमी पशु था। तब से संस्कृति बहुत आगे बढ़ गयी है।’
‘मैं मिस मालती से आपकी कलई खोलूँगा।’
‘मैं अहिंसावादी होना लज्जा की बात नहीं समझता।’
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