सदाबहार >> गोदान गोदानप्रेमचंद
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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...
राय साहब ने गर्म होकर कहा–अगर इसने देवीजी को हाथ लगाया, तो चाहे मेरी लाश यहीं तड़पने लगे, मैं उससे भिड़ जाऊँगा। आखिर वह भी आदमी ही तो है।
मिर्ज़ा साहब ने सन्देह से सिर हिलाकर कहा–राय साहब, आप अभी इन सबों के मिजाज से वाकिफ नहीं हैं। यह फैर करना शुरू करेगा, तो फिर किसी को जिन्दा न छोड़ेगा। इनका निशाना बेखता होता है।
मि० तंखा बेचारे आने वाले चुनाव की समस्या सुलझाने आये थे। दस-पाँच हजार का वारा-न्यारा करके घर जाने का स्वप्न देख रहे थे। यहाँ जीवन ही संकट में पड़ गया। बोले–सबसे सरल उपाय वही है, जो अभी खन्नाजी ने बतलाया। एक हजार ही की बात है और रुपए मौजूद हैं, तो आप लोग क्यों इतना सोच-विचार कर रहे हैं?
मिस मालती ने तंखा को तिरस्कार-भरी आँखों से देखा।
‘आप लोग इतने कायर हैं, यह मैं न समझती थी।’
मैं भी यह न समझता था कि आप को रुपए इतने प्यारे हैं और वह भी मुफ्त के!’
‘जब आप लोग मेरा अपमान देख सकते हैं, तो अपने घर की स्त्रियों का अपमान भी देख सकते होंगे?’
‘तो आप भी पैसे के लिए अपने घर के पुरुषों को होम करने में संकोच न करेंगी।’
खान इतनी देर तक झल्लाया हुआ-सा इन लोगों की गिटपिट सुन रहा था। एका-एक गरजकर बोला–अम अब नयीं मानेगा। अम इतनी देर यहाँ खड़ा है, तुम लोग कोई जवाब नहीं देता। (जेब से सीटी निकालकर) अम तुमको एक लमहा और देता है; अगर तुम रुपया नहीं देता तो अम सीटी बजायेगा और अमारा पचीस जवान यहाँ आ जायगा। बस!
फिर आँखों में प्रेम की ज्वाला भरकर उसने मिस मालती को देखा।
तुम अमारे साथ चलेगा दिलदार! अम तुम्हारे ऊपर फिदा हो जायगा। अपना जान तुम्हारे कदमों पर रख देगा। इतना आदमी तुम्हारा आशिक है; मगर कोई सच्चा आशिक नहीं। सच्चा इश्क़ क्या है, अम दिखा देगा। तुम्हारा इशारा पाते ही अम अपने सीने में खंजर चुबा सकता है।’
मिर्ज़ा ने घिघियाकर कहा–देवीजी, खुदा के लिए इस मूज़ी को रुपए दे दीजिए।
खन्ना ने हाथ जोड़कर याचना की–हमारे ऊपर दया करो मिस मालती!
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