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सदाबहार >> गोदान

गोदान

प्रेमचंद

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :327
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1442
आईएसबीएन :9788170284321

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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...


गाँव के कुत्ते पहले तो भूँकते हुए उसकी तरफ दौड़े। फिर दुम हिलाने लगे। रूपा ने कहा–भैया आये, और तालियाँ बजाती हुई दौड़ी। सोना भी दो-तीन कदम आगे बढ़ी; पर अपने उछाह को भीतर ही दबा गयी। एक साल में उसका यौवन कुछ और संकोचशील हो गया था। झुनिया भी घूँघट निकाले द्वार पर खड़ी हो गयी।

गोबर ने माँ-बाप के चरण छूए और रूपा को गोद में उठाकर प्यार किया। धनिया ने उसे आशीर्वाद दिया और उसका सिर अपनी छाती से लगाकर मानो अपने मातृत्व का पुरस्कार पा गयी। उसका हृदय गर्व से उमड़ा पड़ता था। आज तो वह रानी है। इस फटे-हाल में भी रानी है। कोई उसकी आँखें देखे, उसका मुख देखे, उसका हृदय देखे, उसकी चाल देखे। रानी भी लजा जायगी। गोबर कितना बड़ा हो गया है और पहन-ओढ़कर कैसा भलामानस लगता है। धनिया के मन में कभी अमंगल की शंका न हुई थी। उसका मन कहता था, गोबर कुशल से है और प्रसन्न है। आज उसे आँखों देखकर मानो उसके जीवन के धूल-धक्कड़ में गुम हुआ रत्न मिल गया है; मगर होरी ने मुँह फेर लिया था।

गोबर ने पूछा–दादा को क्या हुआ है, अम्माँ?

धनिया घर का हाल कहकर उसे दुखी न करना चाहती थी। बोली–कुछ नहीं है बेटा, जरा सिर में दर्द है। चलो, कपड़े उतरो, हाथ-मुँह धोओ? कहाँ थे तुम इतने दिन? भला इस तरह कोई घर से भागता है?  और कभी एक चिट्ठी तक न भेजी। आज साल-भर के बाद जाके सुधि ली है। तुम्हारी राह देखते-देखते आँखें फूट गयीं। यही आसा बँधी रहती थी कि कब वह दिन आयेगा और कब तुम्हें देखूँगी। कोई कहता था, मिरच भाग गया, कोई डमरा टापू बताता था। सुन-सुनकर जान सूखी जाती थी। कहाँ रहे इतने दिन?

गोबर ने शमार्ते हुए कहा–कहीं दूर नहीं गया था अम्माँ, यह लखनऊ में तो था।

‘और इतने नियरे रहकर भी कभी एक चिट्ठी न लिखी!’

उधर सोना और रूपा भीतर गोबर का सामान खोलकर चीज का बाँट-बखरा करने में लगी हुई थीं; लेकिन झुनिया दूर खड़ी थी; उसके मुख पर आज मान का शोख रंग झलक रहा है। गोबर ने उसके साथ जो व्यवहार किया है, आज वह उसका बदला लेगी। असामी को देखकर महाजन उससे वह रुपये वसूल करने को भी व्याकुल हो रहा है, जो उसने बट्टेखाते में डाल दिये थे। बच्चा उन चीज़ों की ओर लपक रहा था और चाहता था, सब-का-सब एक साथ मुँह में डाल ले; पर झुनिया उसे गोद से उतरने न देती थी।

सोना बोली–भैया तुम्हारे लिए आईना-कंघी लाये हैं भाभी!

झुनिया ने उपेक्षा भाव से कहा–मुझे आइना-कंघी न चाहिए। अपने पास रखे रहें।

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