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सदाबहार >> गोदान

गोदान

प्रेमचंद

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :327
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1442
आईएसबीएन :9788170284321

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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...


राजा साहब ने सिगार जलाते हुए तंखा की ओर कठोर आँखों से देखकर कहा–तुमने तो सूरत ही नहीं दिखाई मिस्टर तंखा। मुझसे उस दावत के सारे रुपए वसूल कर लिये और होटलवालों को एक पाई न दी, वह मेरा सिर खा रहे हैं। मैं इसे विश्वास घात समझता हूँ। मैं चाहूँ तो अभी तुम्हें पुलिस में दे सकता हूँ।

यह कहते हुए उन्होंने राय साहब को सम्बोधित करके कहा–ऐसा बेईमान आदमी मैंने नहीं देखा राय साहब। मैं सत्य कहता हूँ, मैं कभी आपके मुकाबले में न खड़ा होता। मगर इसी शैतान ने मुझे बहकाया और मेरे एक लाख रुपए बरबाद कर दिये। बँगला खरीद लिया साहब, कार रख ली। एक वेश्या से आशनाई भी कर रखी है। पूरे रईस बन गये और अब दगाबाजी शुरू की है। रईसों की शान निभाने के लिए रियासत चाहिए। आपकी रियासत अपने दोस्तों की आँखों में धूल झोंकना है।

राय साहब ने तंखा की ओर तिरस्कार की आँखों से देखा। और बोले–आप चुप क्यों हैं मिस्टर तंखा, कुछ जवाब दीजिए। राजा साहब ने तो आपका सारा मेहनताना दबा लिया। है इसका कोई जवाब आपके पास? अब कृपा करके यहाँ से चले जाइए और खबरदार फिर अपनी सूरत न दिखाइएगा। दो भले आदमियों में लड़ाई लगाकर अपना उल्लू सीधा करना बेपूँजी का रोजगार है; मगर इसका घाटा और नफा दोनों ही जान-जोखिम है समझ लीजिए।

तंखा ने ऐसा सिर गड़ाया कि फिर न उठाया। धीरे से चले गये। जैसे कोई चोर कुत्ता मालिक के अन्दर आ जाने पर दबकर निकल जाय।

जब वह चले गये, तो राजा साहब ने पूछा–मेरी बुराई करता होगा?

‘जी हाँ; मगर मैंने भी खूब बनाया।’

‘शैतान है।’

‘पूरा।’

‘बाप-बेटे में लड़ाई करवा दे, मियाँ-बीबी में लड़ाई करवा दे। इस फन में उस्ताद है। खैर, आज बचा को अच्छा सबक मिल गया।’

इसके बाद रुद्रपाल के विवाह की बातचीत शुरू हुई। राय साहब के प्राण सूखे जा रहे थे। मानो उन पर कोई निशाना बाँधा जा रहा हो। कहाँ छिप जायँ। कैसे कहें कि रुद्रपाल पर उनका कोई अधिकार नहीं रहा; मगर राजा साहब को परिस्थिति का ज्ञान हो चुका था। राय साहब को अपनी तरफ से कुछ न कहना पड़ा। जान बच गयी। उन्होंने पूछा–आपको इसकी क्योंकर खबर हुई?

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