कहानी संग्रह >> सीट नम्बर 6 सीट नम्बर 6ममता कालिया
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इन कहानियों को मह़ज स्त्री लेखन के कोष्ठक में सीमित नहीं किया जा सकता
हिन्दी कथा साहित्य में अपनी एकल और अलग पहचान बनातीं ममता कालिया की कहानियाँ पहले वाक्य से ही पाठक का ध्यान आकर्षित करती हैं। इन कहानियों में सातवें दशक के बाद के जीवन और जगत् की हलचल महसूस की जा सकती है जब भारतीय समाज में परिवर्तन हो रहा था। इन कहानियों को मह़ज स्त्री लेखन के कोष्ठक में सीमित नहीं किया जा सकता क्योंकि इनमें समूचे समाज की संघर्षधर्मिता विभिन्न पात्रों और स्थितियों द्वारा व्यक्त हुई है। प्रमुख आलोचक मधुरेश के शब्दों में ‘संरचना की दृष्टि से ममता कालिया की कहानियाँ इस औपन्यासिक विस्तार से मुक्त हैं जिसके कारण ही कृष्णा सोबती की अनेक कहानियों को आसानी से उपन्यास मान लिया जाता है। काव्योपकरणों के उपयोग में भी ये संयत कहानियाँ हैं। यह अकारण नहीं कि उनकी भाषा में एक खास तरह की तुर्शी है। जिसकी मदद से वे सामाजिक विद्रूपताओं पर व्यंग्य का बहुत सीधा और सधा उपयोग करती हैं।’
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