रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी घर का भेदीसुरेन्द्र मोहन पाठक
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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
“मुझे क्या मालूम?"
“मैंने तुम्हारा खयाल पूछा है।"
"इस बावत मेरा कोई खयाल नहीं।"
"हत्या तो घोर शत्रुता का काम होता है। कौन था उनका दुश्मन?"
"मुझे क्या पता: सर, आई एम ओनली ए मेड हेयर।"
"साहब तुम्हारे साथ कैसे पेश आते थे?"
"वैसे ही जैसे बाकी स्टाफ के साथ पेश आते थे।"
"हमने बाकी स्टाफ नहीं देखा लेकिन तुम्हारे मुकाबले में वो कैसा होग, इसका
अन्दाजा हम लगा सकते हैं। अगर बतरा साहब तुम्हारे साथ भी बाकी स्टाफ की तरह
पेश आते थे तो जरूर उनकी बीनाई में नुक्स था।"
“और अक्ल में भी।"--रमाकान्त बोला- “और कहीं और भी।"
नीना ने आंखें तरेर कर वारी-बारी दोनों की तरफ देखा और फिर हंसी। फिर तत्काल
वो संजीदा हुई-जैसे याद आ गया हो कि उस माहौल में उसे हंसना नहीं चाहिये
था-और यूं दायें-बायें देखने लगी जैसे तसदीक कर रही हो कि किसी ने उसे हंसता
देखा. . तो नहीं था।
"अच्छे आदमी थे साहब।"-फिर वो धीरे से बोली-“अच्छे और मेहरबान । अब उनके बाद
आगे पता नहीं मेरी यहां नौकरी चलेगी या नहीं!"
“न चले तो मेरे पास. आ जाना।" --रमाकान्त उत्साह से बोला-“ये मेरा
कार्ड....." .
सुनील ने उसे कोहनी मारी।
रमाकान्त खामोश हो गया।
“पार्टी किस वजह से हो रही थी?"--सुनील बोला। - "बेबी की वजह से".-वो वोली-
“ऐसी पार्टियां यहां होती ही रहती हैं।"
"बेबी।"
"मैडम की छोटी बहन । संचिता।"
“पार्टी की कोई खास वजह नहीं थी।" --अर्जुन बोला।
“कोई वजह फिर भी थी तो बस यही कि 'जीजाजी' के पास पार्टियों पर फूंकने के
लिये बहुत पैसा था।"
"मालेमुफ्त दिलेबेरहम।”-सुनील बोला।
"ऐसा ही था।"
"ये सारा हुजूम पार्टी में शुमार लोगों का है।"
"हां" - "लड़के ज्यादा दिखाई दे रहे हैं।"
"हां। "इनमें मेजबान का कोई खास? कोई स्टेडी?"
"मुझे नहीं मालूम। कम से कम मैं नहीं हूं।" .
"होगा तो जरुर कोई । हमेशा होता है।"
“इसी से पूछो।"
"नीना, अगर ऐसी पार्टियां यहां होती रहती हैं तो बेबी के तकरीबन मेहमानों को
तो तुम पहचानती होगी?"
"हाँ"-नीना बोली। .
"बेबी का खास कौन है?"
“यू मीन स्पेशल ब्वायफ्रेंड? मैन आफ्टर हर ओन हार्ट? हर करंट फ्लेम?"
"वही।"
"वो तो पंकज सक्सेना है।"
“पंकज सक्सेना। यहां इस वक्त है वो?"
“हां। वो जो वाल केविनेट का सहारा लिये खड़ा सिगरेट .., पीता पेंडुलम की तरह
आजू-बाजू झूल रहा है, वो पंकज सक्सेना है।"
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