"मैंने उसके जमूरे पंकज सक्सेना से भी बात की थी। उसे ऐसी किसी अंगूठी की कोई
खबर नहीं।" ।
"आई सी।"
"उस लड़की ने"-रमाकान्त बोला-"जानबूझ कर तोहफे वाली बात गोलमोल ढंग से कही
होगी ताकि तोहफा पेश न करना पड़े। पहन कर दिखाना न पड़े।"
“और सुनने वाला इस वहम से मुब्तला रहे कि तोहफा कोई छोटी मोटी चालू आइटम
होगा?"
“बिल्कुल।"
"और" -अर्जुन बोला-"अब वो जमूरा ये भी कहता है कि पन्द्रह दिन पहले के उस
वाकये से पहले भी वो दो-तीन बार वैसा ही नजारा कर चुका था।"
"तो फिर जीजा की खबर पहले क्यों न ली? अपने घूसे से उसका जबड़ा इसी बार क्यों
सहलाया?"
“क्योंकि इसी बार वो उस नजारे के वक्त टुन्न था।"
“यानी कि जो किया, नशे के हवाले होकर किया? होश में होता तो पहले की तरह
बर्दाश्त कर लेता?"
"जाहिर है।" ..
"उन वाकयात की वजह से उसे अपनी माशूक से कोई गिला नहीं, कोई रंजिश नहीं।"
“नहीं। बल्कि हमदर्दी है। इसलिये क्योंकि वो बतरा को विलेन मानता था और इसे
उसकी कमीनगी मानता था कि वो बेचारी बेबी का पीछा नहीं छोड़ता था। कहता था कि
संचिता बहन की खातिर जीजा जी की ज्यादतियां बर्दाश्त करती थी।"
"बर्दाश्त करती थी, माई फुट। खुद मुंह से तो कुबूल करती थी कि बहन की शादी से
पहले से बतरा पर दिल रखती थी। यानी कि बतरा पर न्योछावर होने के लिये तैयार
माल थी। यार ने देख लिया तो शहीद बन के दिखा दिया।"
"मालको!"-रमाकान्त बोला-"तभी तो विलियम शेक्सपियर ने कहा कि त्रिया चरित्रम
पुरुषस्य भाग्यम, दैवो-न जात्येत कुतो मनुष्यः
"ये शेक्सपियर ने कहा है?"
"तो मिल्टन ने कहा होगा। शैली ने कहा होगा। कीट्स ने कहा होगा। बात तो बढ़िया
ही कही है न कहने वाले ने, जो कोई भी वो था।"
"संस्कृत में।"
"मैं अभी संस्कृत बोला था?"
"तुम्हें नहीं पता?"
"पता तो है लेकिन...लगता है आज मुझे जल्दी नशा होने लगा है।"
"बहरहाल बात ये हो रही थी कि मेरी समझ ये कहती है कि वो लड़की जीजा से राजी
थी और अपने निजी स्वार्थ की खातिर, जो कि आर्थिक ही हो सकता था, राजी से जीजा
से फिट थी और उसकी कैजुअल चूमाचाटी को सिर माथे लेती थी।"
“होंठों पर, गुरु जी, होठों पर। सिर माथे से कोई छः इंच नीचे। किस का मामला
है न!" .
"ठीक" . . . . . "लेकिन अगर ऐसा था तो नेपियन रोड' पर उसने हमारे सामने बतरा
को तंगदिल, खुन्दकी और अखलाक से कोरा क्यों कहा था?"
“अपना इमेज बनाने के लिये। खुद को सफेद बताने के लिये दूसरों को स्याह रंगना
ही पड़ता है। मर्जी को मजबूरी बताना ही पड़ता है। अपनी करतूत के लिये दूसरे
को जिम्मेदार ठहराने की परम्परा तो आदि काल से चली आ रही है नौजवान लड़कियों
के जहान में।"
"बिल्कुल ठीक कहा।”-रमाकान्त पुरजोर लहजे से बोला-"राजी से लेटेगी, कोई ऊपर
से आ जायेगा तो हाल दुहाई मचा देगी कि जबरदस्ती लिटा दिया। खुद मेरे साथ दो
बार, नहीं तीन बार, ऐसा हो चुका है जब कि...."
“रमाकान्त, तुम्हारे जाती तजुर्बात की कथा सुनने से पहले अगर हम अपने वीर
बालक की बाकी की बात भी सुन लें तो कैसा रहेगा?"
"कैसा रहेगा?"
"मैंने तुमसे पूछा है।"
"वो तो अच्छा ही रहेगा लेकिन क्या ये अभी कह.नहीं चुका अपनी मुकम्मल बात! तू
खुद बता ओये अर्जुन सिंगा!"
"एक लार्ज पैग में"--अर्जुन बड़ी मासूमियत से बोला "जितनी कही जा सकती है,
उतनी तो कह चुका हूं, जी।"
रमाकान्त की बरबस हंसी छूटी।
"देखीं माईयवे नूं!"-वो बोला- “सीधे नहीं कहता कि नया ड्रिंक बनाओ।"
रमाकान्त ने खुद उसके गिलास में विस्की और सोडा डाला--"लै मां सदके। रज्ज के
पी। भर भर प्याले पी। गोल्ली किदी ते गहने किदे!"
“थैंक्यू।" --अर्जुन कृतज्ञ भाव से बोला।
“उसके लिये तो मैंशन नाट है लेकिन अब तू आगे भी तो बढ़ वरना अपना मित्तर
प्यारा औखा हो जायेगा।"
“और पुलिस की तफ्तीश से ऐसी संभावना सामने आयी है कि बत्तीस कैलीबर की जिस
रिवॉल्वर से कत्ल हुआ था, वो मकतूल की अपनी थी।"
"कैसे?" -सुनील ने पूछा।
“फायरआर्म्स के रिकार्ड से स्थापित हुआ है कि बतरा के पास दो लाइसेंसशुदा
रिवाल्वरें थीं। एक हाथी दांत के हैण्डल वाली बत्तीस कैलीबर की और दूसरी
लकड़ी के रुटीन हैंडल वाली अड़तीस कैलीबर की। दोनों रिवॉल्वरें वो अपनी स्टडी
से लगी एग्जीक्यूटिव टेबल के एक दराज में रखता था-स्टडी, बाई दि वे, पहली
मंजिल पर भावना के बेडरूम के पहलू में है-वहां केवल एक अड़तीस कैलीबर की
रिवॉल्वर पड़ी पायी गयी है, दूसरी, बत्तीस कैलीबर की, वहां से गायब है। पुलिस
ने सारी कोठी की तलाशी ली है। वो कहीं से बरामद नहीं हुई है।"
"फिर तो ये कहना गलत है कि कोई बाहरी आदमी आया और बाहर से गोली चलाकर बाहर से
ही चलता बना। ऐसे शख्स के हाथ पहली मंजिल पर कहीं मौजूद रिवॉल्वर भला कैसे लग
सकती थी! फिर तो कातिल कोई ऐसा शख्स होना चाहिये जो न केवल रिवॉल्वर की बाबत
जानता था बल्कि वो बेरोक टोक उस तक पहुंच भी बना सकता था।"
“ऐसा कोई बाहरी आदमी भला कैसे हो सकता है? पहली मंजिल पर तो बहुत आवाजाही थी।
इतने लोग वहां मौजूद थे। वो किसी के भी द्वारा स्टडी में दाखिल होता या वहां
से बाहर निकलता देखा जा सकता था।"
“पार्टी का कोई मेहमान भी कैसे हो सकता है? किसी ने ऐसा कुछ किया होता तो वो
जरूर किसी दूसरे मेहमान की निगाहों में आ गया होता। अर्जुन, हमें खास इस बात
को पिनप्वायंट करके पार्टी के मेहमानों और घर के नौकर-चाकरों से पूछताछ करनी
चाहिये।"
"हमें?"
"तुझे। क्योंकि तू पार्टी का मेहमान था और मेहमानों से वाकिफ था।"
“मेहमान तो बिखर गये। उनसे बात करने तो घर-घर जाना पड़ेगा।"
"चले जाना। कौन-सा सौ पचास घर जाना है!"
"अच्छी बात है।"
"कल सुबह ही शुरू हो जाना।
"ठीक है। लेकिन मेरा एक सवाल है, गुरु जी।"
"क्या ?" "सारे वाहियात काम मेरे ही पल्ले क्यों पड़ते हैं?"
"फिर शाबाशी के तौर पर स्काच विस्की भी तो तेरे ही पल्ले पड़ती है।"
"यानी कि कल भी पड़ेगी।"
"कोई शाबाशी वाला काम करेगा तो।"
“मैं जरूर करूंगा।"
"तो समझ ले कि कल तू स्काच विस्की न सिर्फ पियेगा बल्कि उस से हाथ-मुंह भी
धोयेगा।"
"वाह!",
"मुंह धोके आये अर्जुन"---रमाकान्त बोला- “और हाथ धोके जाये। दोनों तरफ लगा
है नलका मेरी गली में।"
अर्जुन बाग बाग हो गया। उस रात उसकी यूथ क्लब में यादगार खातिर हुई।
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