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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : रवि पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


अभी कोई चार साल पहले तक बतरा एक निहायत मामूली पत्रकार था जो कि पत्रकारिता के क्षेत्र में इसलिये बदनाम था कि वो किसी भी अखबार की मुलाजमत में ज्यादा देर नहीं टिक पाता था-कई जगह तो वो एक महीना भी पूरा नहीं कर पाया था-लेकिन उसके उस बुरे रिकार्ड को ब्रेक तब लगा था जबकि नगर से जागरूक नाम का एक नया दैनिक अखवार प्रकाशित होना शुरू हुआ था और जिसके एडिटोरियल स्टाफ में बतरा अपनी विशेष नियुक्ति हुई बताता था। उस विशेष नियुक्ति की चुगली करने वाली कोई और बात तो सामने नहीं आयी थी, सिवाय इसके कि उसमें एक 'घर का भेदी' नाम का साप्ताहिक कॉलम छपना शरू हआ था। एक साल में ही अपनी चटखारेदार बातों की वजह से वो कॉलम बहत प्रसिद्ध हो गया था। इतना प्रसिद्ध हो गया था कि उस अखबार का शनिवार का अंक, जिसमें कि वो साप्ताहिक कॉलम छपता था, अखबार की नार्मल सर्कुलेशन से पांच गुणा छपने लगा था। कॉलम में बाइलाइन के तौर पर केवल 'जीकेबी' (GKB) छपता था। उसकी बाबत 'जागरूक' के सम्पादक से सवाल होता था तो यही जवाब मिलता था कि वो कॉलम लिखने वाले के नाम के प्रथमाक्षर थे।

लेकिन जीकेबी से बनता क्या था?-अक्सर पूछा जाता था।
घर का भेदी-हमेशा जवाब मिलता था।
यानी की कॉलम का और उसके लेखक का एक ही नाम था-घर का भेदी।
लेकिन घर का भेदी किसका नाम था?

'जागरूक' से इस बाबत कभी कोई जवाब नहीं मिलता था।
वैसे क्योंकि गोपाल कृष्ण बतरा के नाम के प्रथमाक्षर भी जीकेबी ही थे इसलिये आम कहा जाता था कि बतरा ही उस कॉलम का लेखक था। लेकिन न कभी बतरा इस बात की अपनी जुबानी पुष्टि करता था और न उसका एडीटर या अखबार का मालिक।

उस कॉलम में जो बातें प्रकाशित होती थीं उनकी बाबत कहा जाता था कि वो नगर के कई गणमान्य व्यक्तियों की आपबीती होती थीं जिन्हें कि उजागर होने देना वो अफोर्ड नहीं कर सकते थे। वैसी बातें इशारों की जुबान में एकाएक छपनी शुरू होती थीं और फिर एकाएक ही बन्द हो जाती थीं। पत्रकार बिरादरी में आम ये कहा जाता था कि वो कॉलम बतरा का खड़ा किया गया एक ब्लैकमेलिंग प्लेटफार्म था लेकिन कभी भी कोई कुछ साबित नहीं कर सका था। अखबार को यूं ब्लैकमेल का जरिया बनाने का आइडिया भी कोई नया नहीं था। पहले भी ऐसा कई बार हो चुका था और हालिया मिसाल 'टॉप सीक्रेट' की थी जो कि घर का भेदी नामक कॉलम की तरह ही एक स्कैण्डल शीट था और उसके मालिक, प्रकाशक, लेखक, जो कि एक ही शख्स था, का मिशन भी धनाढ्य लोगों को उनकी कमजोरियां उजागर करके ब्लैकमेल करना था। बतरा उस खेल का नया खिलाड़ी भले ही नहीं था लेकिन सबसे कामयाब खिलाड़ी वो यकीनन था क्योंकि पिछले दो सालों में उसकी मामूली हैसियत में इंकलाबी तब्दीली आयी थी। उसने नेपियन हिल वाली वो कोठी खरीद ली थी, पूछे जाने पर जिसे कि वो लम्बी लीज़ पर किराये पर ली बताता था और जहां कि वो अपनी बीवी भावना, अविवाहित साली संचिता और कोई आधी दर्जन नौकरों के साथ रहता था।

हाल में ये भी कहा जाने लगा कि 'जागरूक' का मालिक ही वो था-पहले भले ही कोई और रहा हो लेकिन अब मालिक वो था लेकिन इस बात को भी साबित करने का जरिया किसी के पास नहीं था। लिहाजा 'घर का भेदी' और उसके कथित लेखक के बारे में जो भी खुसर-पुसर होती थी, बतरा की पीठ पीछे ही होती थी।

ऐसे आदमी का कत्ल हो जाना कोई बड़ी चौंका देने वाली घटना नहीं थी क्योंकि जैसे पत्रकार बिरादरी की ये आम राय थी कि 'घर का भेदी' का जीकेबी गोपाल कृष्ण बतरा ही था वैसे ही ये बात उसके किसी ब्लैकमेल के शिकार को भी सूझ सकती थी जो कि अब उसकी मौत की वजह बना हो सकता था। ब्लैकमेल से तंग आये लोग ब्लैकमेलर के खिलाफ ऐसा कोई कदम उठाते अक्सर पाये जाते थे। अलबत्ता ये बात काफी दीदादिलेरी की थी कि किसी ने उसे घर में घुसकर मारा था।

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