रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी घर का भेदीसुरेन्द्र मोहन पाठक
|
0 |
अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
आधा घंटा यूं ही गुजरा।
“तुमने एक बात नोट की?" -फिर एकाएक रमाकान्त बोला।
"क्या?"-सुनील बोला।
"ये इन्स्पेक्टर चानना विधवी.....विधवा से बात करने से खास तौर से परहेज करता
मालूम होता है जबकि दस्तूर के मुताबिक उसे सबसे पहले उसे ही तलब करना चाहिये
था या खुद उसके पास पहुंचना चाहिये था।"
“वजह?"
"तू बता। इतना आलम फाजिल तो तू ही है।"
वो छोकरी कह रही थी कि इन्स्पेक्टर चानना फैमिली फ्रेंड हैं। कहीं छोकरी
फ्रेंड ही तो नहीं?" ।
"या बीवी फ्रेंड!"
"क्या बड़ी बात है? जब मरने वाले के अपनी बीवी से ताल्लुकात ठीक नहीं थे तो
खराब ताल्लुकात की कोई वजह भी तो होगी।"
"होगी।"
"क्या?"
"सोच, भई। कोई आदमी रंगीला राजा हो सकता है तो औरत भी तो रंगीली रानी हो सकती
है।"
"बीवी की सूरत देखने के बाद मैं इस बात का बेहतर जवाब दे सकता हूं।"
"बहन जैसे ही होगी।"
"देखें तो पता चले।" तभी अर्जुन वहां पहुंचा।
"बड़ी देर में लौटा, मेरे जिगर के टुकड़े!" -सुनील बोला।
"पंगा पड़ गया था।"-अर्जुन बोला- “ऊपर जाती सीढ़ियों के दहाने पर एक सिपाही
खड़ा था जो कि वहां से टलता ही नहीं था। आखिरकार अब टला वो वहां से।"
"तो?"
"तो क्या? बीवी से बात करनी है तो अब मौका है। चुपचाप ऊपर पहुंचिये।"
"तू ऊपर नहीं गया था।" - "कहां? मैं तो सिपाही के हटते ही आप को खबर करने लौट
आया था।"
"सिपाही फिर आ जायेगा।"
"दुआ कीजिये कि न आये। वैसे मेरे खयाल से तो नहीं आयेगा।"
"क्यों?"
"मेरे खयाल से वो महज वहां खड़ा था, तैनात नहीं था सीढ़ियों के दहाने पर। अब
वो इन्स्पेक्टर की टेबल के करीब खड़ा है। अगर वो वहां तैनात होता तो वहां से
न हिलता। हिलता तो उलटे पांव लौट के आता।"
"ठीक।"
"अब मौका है। फायदा उठाइये।"
"ऊपर उसका कमरा कौन सा है?"
"दाईं ओर का दूसरा।" सुनील बाहर की ओर बढ़ा।
"मैं साथ चलूं?" -रमाकान्त बोला।
"नहीं।" --सुनील बोला-“अकेले जाना ठीक होगा। कोई सवाल करेगा तो कह दूंगा कि
तुम्हारी ही तलाश में भटक रहा था। तुम साथ हुए तो......"
"मैं समझ गया। ठीक है। जा।"
सुनील निर्विघ्न पहली मंजिल पर पहुंचा जहां कि मुकम्मल सन्नाटा.था।
यह देखकर वो सकपकाया कि दाईं ओर के दूसरे कमरे को बाहर से कुण्डी लगी हुई थी।
क्यों भला?-उसने मन ही मन सोचा-क्या मकतूल की बीवी कहीं चली गयी थी और जाती
बार दरवाजे को बाहर से कुण्डी लगा गयी थी?
|