रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी घर का भेदीसुरेन्द्र मोहन पाठक
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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
"वो जीजा साली के अफेयर की तरफ इशारा कर रहा था।"
"पागल है साला । जब भी ज्यादा पी लेता है, अक्ल को ताक पर रख देता है
लेकिन"-फिर उसने जल्दी से जोड़ा-“अच्छा लड़का है। एकदम साफ दिल का। मुझे
पसन्द है। बस एक ही खामी है उसमें कि पीता बहुत है।"
"हमेशा?" . "हमेशा नहीं। डेली ड्रिंकर नहीं है वो। लेकिन किसी पार्टी वगैरह
में जब एक बार गिलास थाम लेता है तो तभी वो सिलसिला खत्म होता है जब कि या तो
विस्की खत्म हो जाये या गिलास अपने आप ही उसके हाथ से छूट जाये। बाद में
शर्मिन्दा होता है, सौ-सौ बार माफियां मांगता है, कभी वो हरकत न दोहराने की
कसम खाता है लेकिन फिर गिलास हाथ में आता है तो फिर सब भूल जाता है।"
"तौबा क्यों नहीं कर लेता?"
"अब मैं क्या कहूं? पीना इतना फैशनेबल हो गया है अरबन सोसायटी में कि
ड्रिंक्स बिना कोई पार्टी चलती ही नहीं। कभी बिना इिंक्स के किसी पार्टी की
घोषणा कीजिये, देख लीजियेगा, कोई भी नहीं आयेगा।"
"ठीक कह रही है ये।"- रमाकान्त धीरे से बोला।
सनील ने सहमति में सिर हिलाया और फिर बोला- “आपके जीजाजी और आपकी तरफ इशारा
करती उसने एक बड़ी स्पेसिफिक बात कही थीं।"
"क्या ?"
"यह कि उसने बतरा साहब को आपको बाहों में लेकर किस करते देख लिया था।"
"ओह, बौश एण्ड नानसेंस। इतनी-सी बात को ये रंग दिया उसने?"
"इतनी-सी बात? जिस बात की वजह से उसने बतरी साहब पर हाथ तक उठाया, उसे आप
इतनी-सी बात कह रही हैं?"
"इतनी-सी बात ही थी वो जिसका उस ईडियट ने बतंगड़ बनाया क्योंकि उस वाकये के
वक्त भी वो नशे में था।"
"आई सी।"
"उस रोज मेरा जन्मदिन था।"
"जन्मदिन के उपहार के तौर पर?"
"हां। तब से लेकर चीखती चिल्लाती नीना के ऊपर आने तक वो हर वक्त मेरी निगाहों
में था, इसलिये मैं गारन्टी के साथ कह सकती हूं कि एक बार भी उसने नीचे का
रुख नहीं किया था।"
"फिर वो तो कातिल नहीं हो सकता।"
"सवाल ही नहीं पैदा होता। मैं फिर, फिर और फिर कहती हूं कि ये कोठी में
मौजूद किसी शख्स का काम नहीं।"
"नौकरों में से भी किसी का नहीं?"
"हरगिज नहीं। सब बहुत आजमाये और परखे हुए हैं।"
“तो फिर बाहर से कौन आ गया कत्ल करने के लिये?"
"कोई भी आ गया हो सकता है। उनके कॉलम की वजह से सौ दुश्मन थे उनके।"
"उनका कॉलम? यानी कि 'घर का भेदी' ?"
"हां"
"यानी कि आप कबूल करती हैं कि 'घर का भेदी' का लेखक जो जीकेबी था, वो और कोई
नहीं, आपके जीजा गोपाल कृष्ण बतरा ही थे?"
"हां"
“कमाल है! बतरा साहब ने तो अपनी जिन्दगी में, अपनी जुबानी, कभी दो टूक ये बात
न मानी!" .
"सब जानते थे।"
"फिर भी बतरा साहब ने अपनी जुबानी ये बात कभी कुबूल ..न की। जीकेबी होने से
इन्कार न किया तो हामी भी न भरी।"
"उसकी भी कोई वजह होगी।"
“जो कि अब गयी मरने वाले के साथ। बहरहाल, आपकी राय में बतरा साहब के घर का
भेदी नाम के कॉलम से हलकान किसी व्यक्ति ने उनका खून किया था?" ।
"हां" .
“यानी कि आप कबूल करती हैं कि वो कॉलम असल में ब्लैकमेल का जरिया था और बतरा
साहब की तमाम तरक्की और खुशहाली की बुनियाद ब्लैकमेल थी?"
“ये मैंने कब कहा?"
वो हड़बड़ा कर बोली।
“साफ नहीं कहा लेकिन जो कुछ आपने कहा, उसका नतीजा तो यही निकलता है।"
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