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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : रवि पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


वही इन्स्पेक्टर चानना तब वहां मौकायवारदात पर पहंचा था।

इन्स्पेक्टर चानना ने सबसे पहले इस बात की तसदीक की कि वारदात के बाद से कोई शख्स वहां से रुखसत नहीं हो गया था, फिर उसने संचिता की सहायता से तमाम मेहमानों की एक लिस्ट बनायी और फिर इस बाबत सब को चेतावनी जारी की कि पुलिस की इजाजत के बिना कोई भी शख्स-मेहमान, मेजबान' या नौकर-चाकर-वहां से बाहर कदम रखने की कोशिश न करे। फिर अपने सहयोगियों के साथ उसने लाश का मुआयना शुरू किया। वो सिलसिला अभी जारी ही था कि उसने ड्राईंगरूम में ही एक तरफ एक मेज कुर्सी लगवा ली और वहां बैठकर बारी-बारी गवाहों को तलब करना शरू किया।

यूं उसने अपनी पूछताछ का सिलसिला नौकरों से शुरू किया।
“ये नादान है" -सुनील धीरे से बोला- “जो पहले स्टाफ के पीछे पड़ रहा है। हम इसकी नादानी का फायदा उठा सकते हैं।"
"कैसे, प्यारयो?" --रमाकान्त बोला।
"क्या फायदा उठा सकते हैं?"--अर्जुन बोला।
"तेरी सहेली कहां है?"
"सहेली?"
"संचिता। तेरी मेजबान । जिसकी वजह से तू यहां है।"
"अच्छा, वो! यहीं कहीं होगी। क्यों?"
"उसे ढूंढ । और उससे मेरी बात करा।"
"अभी?"
"और क्या परसों? अभी मौका है उससे कोई कारआमद बात हो पाने का। पुलिस से बात हो जाने के बाद हो सकता है वो-पुलिस की हिदायत पर या अपनी मर्जी से-किसी के सामने जुबान खोलने के लिये तैयार न हो। समझा?"
"हां।"
"तो हिल यहां से और इस बावत कोई गुड न्यूज लेकर आ।" अर्जुन गया। वो लौटा तो अपेक्षित गुड न्यूज का साधन उसके साथ था।
सनील ने आंख भर कर संचिता की तरफ देखा तो पाया कि वो कोई तेइस-चौवीस साल की पोशाक और रखरखाव में निहायत फैशनेबल लड़की थी और उसकी सूरत या पोशाक से ऐसा नहीं लगता था कि उसे इस बात का अहसास था कि घर में एक मौत हो गयी थी।
अर्जुन ने उसका सुनील और रमाकान्त से परिचय कराया।
"मैं आपके नाम से वाकिफ हूं।"--वो सुनील से बोली
"आप तो बड़े फेमस जर्नलिस्ट हैं।"
"खुदा की मेहर है वरना मेरी क्या बिसात है!" -सुनील एक क्षण ठिठका और फिर बोला-“मुझे आपके जीजा जी की मौत का अफसोस है।"
वो खामोश रही।
"कल्ल का मामला है। अब पुलिस भी काफी हलकान करेगी सब को?"
उसने इंकार में सिर हिलाया। .. "क्या मतलब?"
“जो इन्स्पेक्टर साहब अभी तफ्तीश के लिये यहां पहुंचे हैं, . वो फैमिली फ्रेंड हैं। मुझे यकीन है इन्स्पेक्टर चानना कोई ऐसा काम नहीं करेंगे जो कि हमारे या हमारे मेहमानों के लिये परेशानी खड़ी करने वाला होगा।"
“दैट्स वैरी गुड न्यूज । वैसे पुलिस वाले ऐसे मुलाहजों से मुन्तला होते तो नहीं!"
सब पुलिस वाले एक जैसे नहीं होते। मिस्टर चानना हमारा लिहाज जरूर करेंगे।”
"यानी कि वो लिहाज को तरजीह देंगे, न कि कातिल को गिरफ्तार करने को?".
"कातिल यहां मौजूद लोगों में से न कोई है, न हो सकता है।
यानी कि कोई बाहर से आया और कत्ल कर गया,
“ऐसा ही जान पड़ता है। क्या मुश्किल काम है? कातिल का तो इमारत में दाखिल होना भी जरूरी नहीं था। वो तो उस खुली खिड़की से बाहर से ही भीतर गोली चला सकता था जैसे कि उसने चलाई थी?"
"पिछवाड़ से किसी के दाखिले के मामले में यहां चौकसी की कोई व्यवस्था नहीं?
"पीछे चारदीवारी है लेकिन वो इतनी नीची है कि उसे कोई भी फांद सकता है। उसमें जो फाटक है, वो अक्सर खुला रहता है।"
“यानी कि पिछवाड़े से कोई भी भीतर घुसा चला आ सकता है?"
"कम्पाउन्ड में ही। कोठी में नहीं। क्योंकि रात को यहां के  तमाम खिड़कियां, दरवाजे मजबूती से भीतर से बन्द किये जाते हैं।

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