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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : रवि पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


“बात कुछ और हो रही थी। कल रात चोपड़ा तुम्हें रोज रोज क्लब आने की जगह हमेशा के लिये वहीं रुक जाने का दावतनामा दे रहा था। वो ये नहीं कहेगा कि शादी के विरोध में कहीं भाग जाने की जगह तुम वहीं आ जाओ?"
“नहीं कहेगा। कुछ कहने में और कुछ कर दिखाने में बहुत फर्क होता है। पिछली बार जब मैं घर से भागी थी तो डैडी ने मेरी तलाश में उसके क्लब और घर दोनों जगहों पर पुलिस का छापा पड़वा दिया था। ऐसा इस बार भी हो सकता है इसलिये चोपड़ा ऐसी कोई पेशकश नहीं करेगा।"
“वो तुम्हारी एक महीने की ड्रग सप्लाई की मांग पूरी करेगा?”
“शादी वाली बात पर पूरी करेगा। वो भी तो नहीं चाहता कि मेरी शादी हो जाये और उसकी मुर्गी उसके हाथ से निकल जाये।"
“गुड। मेरी स्कीम के लिये जरूरी है कि हेरोइन के साथ वो तुम्हारे पास खुद पहुंचे, किसी और को न भेज दे।"
"वो खुद ही पहुंचेगा। जब बात मेरे महीने के लिये कहीं जाने की होगी तो मेरे से मुलाकात का-रंगीन मुलाकात का-आखिरी मौका वो नहीं छोड़ेगा।" .
"वैरी गुड। उसे फोन करो और उसके साथ रात नौ बजे की 'सपना' में अपनी अप्वायन्टमेंट फिक्स करो।"
“सपना?" - निकल चेन' जैसी ही नाइट क्लब है। कभी उसे सोहनलाल नाम का एक गैंगस्टर चलाता था, अब उसे फ्लोरेंस चलाती है जो कि कभी गैंगस्टर्स मौल और वहां की कैब्रेडांसर हुआ करती थी। फ्लोरेंस मेरी फ्रैंड है। मुझे यकीन है कि मैं जो कहूंगा, वो करेगी।"
"तुम क्या करोगे?"
"रावण मारूंगा। आज दशहरा है। रिमेम्बर?"
"खता खाओगे। ये रावण इतनी आसानी से नहीं मरने वाला।"
"देखेंगे। फिलहाल तुम तेल देखो और तेल की धार देखो।"
'सपना' क्यों?"
"क्योंकि वहीं मेरी पेश चल सकती है।"
"उसने 'निकल चेन' आने की जिद की तो?"
"तो तुम्हें उसकी जिद तोड़नी होगी। तानिया, उसका 'सपना' में आना जरूरी है। वहीं मैं कोई अपनी मनमानी कर सकता हूं। मैं 'निकल चेन' गया तो कल की तरह मार खा कर ही लौटूंगा।"
"मार?"
“बेभाव की पड़ी तूफानेहमदम, बेभाव की पड़ी।”
"इसीलिये तुम चोपड़ा से बदला उतारना चाहते हो?"
"स्वीटहार्ट, चोपड़ा से बदला उतारने के मेरे पास सौ तरीके हैं, लेकिन उनमें से ऐसा एक भी नहीं है जो तुम्हें तुम्हारी दुश्वारियों से निजात दिला सके। इसलिये सच में आजाद होने की तमन्नाई हो तो जैसा मैं कहता हूं, वैसा करो।"
उसने फिर हुज्जत न की। . .
'सपना' हर्नबी रोड पर स्थित एक तीनमंजिला इमारत में स्थित नाइट क्लब थी। उसके ग्राउन्ड फ्लोर पर क्लब का मेन हाल था जिसमें एक बार था और बैंड, डांस और कैब्रे का प्रबन्ध था। सपना के मूल स्वामी सोहनलाल जोशी की जिन्दगी में उसके टॉप फ्लोर पर एक गैरकानूनी जुआघर चलता था जो कि फ्लोरेंस के टैकओवर करने पर बन्द कर दिया गया था। इमारत की पहली मंजिल पर कुछ कमरे थे जो कि नीचे हाल में भीड़ हो जाने पर वहां के खास मेहमानों की दरख्वास्त पर खोले जाते थे।
उन्हीं कमरों में से कोई सुनील का निशाना था। फ्लोरेंस बड़े प्रेम भाव से उससे मिली।
"क्या बात है, हैंडसम?"-वो शिकायतभरे स्वर में बोली "कभी आते ही नहीं हो!"
"क्या करूं?"-सुनील बोला--"जब से 'ब्लास्ट' का चीफ रिपोर्टर बना हूं मसरूफियात हद से ज्यादा बढ़ गयी हैं।"
“अपनों के लिये तो वक्त निकालना पड़ता है न?"
“मैं आइन्दा खयाल रखूँगा और.....कुछ करूंगा।"
“विस्की मंगाये? तुम्हारी पसन्द । मेरी पसन्द । जानीवाकर ब्लैकलेबल।"
"इस वक्त नहीं।"
“क्या हुआ है इस वक्त को?"
“वक्त को कुछ नहीं हुआ। मुझे हुआ है। टाइम नहीं है।"
"फिर टाइम का रोना!"
"लेकिन आज की तारीख में मैं तुम्हारे साथ चियर्स जरूर बोलूंगा। मौत का फरिश्ता भी लेने आ गया तो उसे कहूंगा कि अपनी विजिट पोस्टपोन करे क्योंकि मैंने आज तारीख बदलने से पहले फ्लोरेंस मैडम के साथ चियर्स बोलना है।".
"बातें बढ़िया करते हो।"-वो हंसती हुई बोली।
"और मुझे आता क्या है?" .
"कृष्ण भगवान बंसी बजा कर गोपियों का मन मोह लेते थे, तुम्हारा ये काम जरूर बातों से ही बन जाता होगा?"
सुनील हंसा।
"शहर की आधे से ज्यादा नौजवान लड़कियां जो सोलह हजार नहीं तो कुछ ही कम होंगी-जरूर तुम्हारे लिये करवा चौथ का व्रत रखती होंगी?"
"क्या बात करती हो! ऐसा कहीं होता है!" ... "कहीं नहीं होता लेकिन जहां तुम होते हो, वहां होता है।" सुनील फिर हंसा।
"अब बोलो, कैसे आये?" । सुनील ने बताया।

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