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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : रवि पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


"फिर तो बधाई हो।"
"मैं जाती तौर पर तुम्हारा शुक्रगुजार होना चाहता था इसलिये यहां आया । तुम्हारे अहसान का बदला तो मैं नहीं चुका सकता लेकिन अपनी बाकी जिन्दगी में कभी भी तुम्हारे किसी काम आ सका तो मुझे दिली खुशी होगी।" ।
वो एकाएक उठ खड़ा हुआ।
"अरे, बैठिये, जनाब ।”-सुनील आग्रहपूर्ण स्वर में बोला "कॉफी तो पी के जाइये।"
"आज नहीं। फिर कभी। बेटा, कभी मेरे किये तुम्हारा कोई काम होता हो तो मुझे जरूर खबर करना। मैं उसे अपना काम समझ कर करूंगा।"
"अच्छी बात है।" उसने बड़ी गर्मजोशी से सुनील से हाथ मिलाया और खुशी
खुशी वहां से रुखसत हुआ।
पीछे सुनील ने अपना पोर्टेबल टाइपराइटर अपने सामने रख लिया और उस पर उंगलियां दौड़ाता निरंजन चोपड़ा से सम्बंधित रिपोर्ट तैयार करने लगा।
लंच के बाद सुनील रेडियो स्टेशन पहुंचा।
साउन्ड इंजीनियर मजूमदार भी तभी लंच करके वापिस लौटा था। बड़ी कठिनाई से सुनील उसे बात करने के लिये तैयार कर पाया।
"ये बात अब कोई राज नहीं रही है, दादा"-सुनील बोला "कि अपने चार दिन पहले के ब्राडकास्ट के दौरान आपका डिस्क जॉकी संजीव सूरी स्टूडियो नम्बर फाइव में नहीं था और वो प्रोग्राम उसके छोटे भाई राजीव सूरी ने उसकी जगह ब्राडकास्ट किया था। संजीव सूरी की यही पोल खुल जाने की वजह से वो इस वक्त गिरफ्तार है लेकिन उसकी दुहाई यही है कि वो बेगुनाह है।"
"मुझे उससे क्या फर्क पड़ता है?"-मजूमदार बोला- "मेरी तो ऐसी तैसी फिर गयी न उसके चक्कर में! अभी ये बात खुल कर सामने नहीं आयी इसलिये मेरे स्टेशन डायरेक्टर को नहीं मालूम । इसका प्रचार होते ही जानते हो क्या होगा?"
"क्या होगा?" .
"सस्पेंशन लेटर तो मुझे चुटकियों में थमा दिया जायेगा। नौकरी भी चली जाये तो कोई बड़ी बात नहीं।"
"ओह!"
“बतरा का कत्ल साढ़े नौ बजे हुआ बताते हैं। कम्बख्त कत्ल करके ही सीधा यहां आ जाता। वो टेल एण्ड पर भी अपने भाई को खिसका कर प्रोग्राम खुद सम्भाल लेता तो मैं खम ठोक के कह सकता था कि वो शुरू से यहीं था।"
"शायद उसने कत्ल न किया हो!"
"फिर तो वो जरूर ही यहां आ सकता था और..." एकाएक सुनील के मोबाइल फोन की घण्टी बजी।।
"एक्सक्यूज मी।"-वो बोला और उसने जेब से फोन निकालकर काल रिसीव की।
लाइन पर जौहरी था।
"सुरभि सान्याल का पता चल गया है।"-वो बोला।
"गुड।"-सुनील बोला-“कहां है?"
"मेरे साथ है।"
"कहां मिली?"
"हाउसिंग बोर्ड कालोनी के एक फ्लैट में। वो ही पता झेरी के लेकव्यू होटल में मिस्टर एण्ड मिसेज कुमार का दर्ज था।"
"यानी कि आसानी से मिल गयी?"
"हां। कदरन। अब मेरे लिये क्या हुक्म है?"
"तुम उसे लेकर नेपियन हिल बतरा की कोठी पर पहुंचो।"
"आप वहां होंगे?"
"हां। वो वहां आने से हुज्जत तो नहीं करेगी?"
"नहीं करेगी। मैंने उसे समझा दिया है कि जो कुछ हो रहा है, संजीव सूरी की भलाई के लिये हो रहा है। उसकी गिरफ्तारी से वो बहुत हलकान है। इसलिये कुछ भी करने को तैयार है।"
"गुड।"
सुनील ने फोन जेब के हवाले किया और फिर मजूमदार की ओर आकर्षित हुआ।
“तो”-वो बोला- “उस ब्राडकास्ट के बाद से आपकी सूरी से कोई कम्यूनीकेशन नहीं है?"
"उस टेलीफोन काल के बाद से नहीं है जो कि उसने मुझे उस रात साढ़े दस बजे की थी।"
"अच्छा! उसने फोन किया था आपको?"
"हां!"
"कहां?"
“यहीं और कहां! मैं स्टूडियो का साउन्ड इंजीनियर हूं। मुझे ‘ए डेट विद यू' से वाद के भी ब्राडकास्ट संभालने होते हैं।"

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