नाटक-एकाँकी >> लहरों के राजहंस (पेपरबैक) लहरों के राजहंस (पेपरबैक)मोहन राकेश
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नंद : मुझे याद रहेगी तो याद दिलाऊँगा।
सुंदरी : और आज दिन-भर प्रसन्न रहेंगे।
नंद : (रुकते-से स्वर में)
हाँ, प्रसन्न क्यों नहीं रहूँगा ?
सुंदरी : (मुस्कराकर)
प्रातः उठते ही मृग की बात सोचेंगे, तो कैसे प्रसन्न रहेंगे ?
नंद उठकर उसके पास आता है।
नंद : एक बात का मैं कभी निश्चय नहीं कर पाता।
सुंदरी हाथ रोककर उसकी ओर देखती है।
सुंदरी : किस बात का ?
नंद : कि मैं किस पर अधिक मुग्ध हूँ तुम्हारी सुंदरता पर या तुम्हारी चातुरी
पर।
सुंदरी कृत्रिम रोष के साथ उठ खड़ी होती है।
सुंदरी : आप मुझे चतुर कहते हैं ?
नंद : नहीं हो तुम ? : (जैसे बहुत भोलेपन से)
नहीं तो। ना-ना (फिर जैसे व्यस्ततापूर्वक ढूँढ़ती हुई)
चंदन-लेप कहाँ है ? अलका ने न जाने ।
नंद : चंदन-लेप यहाँ है ।
झुककर नीचे से गिरी हुई कटोरी उठा लेता है और सुंदरी की ओर बढ़ा देता है। यह
लो।
सुंदरी कटोरी लेकर निराशा के भाव से रख देती है।
सुंदरी : यह तो खाली है। जो थोड़ा-बहुत लेप है, वह भी सूखा है।
नंद : कल तुम्हीं ने तो ।
सुंदरी : (आँखों में रोष लाकर)
फिर कल की बात याद करते हैं ?
अच्छा, अब नहीं करूँगा।
सुंदरी : पर अब जो याद की इसके लिए दंड भुगतना पड़ेगा।
नंद : क्या दंड होगा ?
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