गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
राजकुमार ऋतध्वज बड़े वेगसे अपने नगरमें आये। उस समय उनके मनमें माता-पिताके चरणोंकी वन्दना करने तथा मदालसाको देखनेकी प्रबल इच्छा थी। वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा, सामने आनेवाले सभी लोग उद्विग्न हैं, किसीके मुखपर प्रसन्नताका चिह्न नहीं है; किन्तु साथ ही सबकी आकृतिसे आश्चर्य टपक रहा है और मुखपर अत्यन्त हर्ष छा रहा है। पिता-माता तथा अन्य बन्धु- बान्धवोंने उन्हें छातीसे लगाया और 'चिरंजीवी रहो वत्स!' यह कहकर कल्याणमय आशीर्वाद दिया। राजकुमार भी सबको प्रणाम करके आश्चर्यमग्न हो पूछने लगे- 'यह क्या बात है?' पितासे पूछनेपर उन्होंने बीती हुई सारी बातें कह सुनायीं। अपनी मनोरमा भार्या मदालसाकी मृत्युका समाचार सुनकर तथा माता-पिताको सामने खड़ा देख वे लज्जा और शोकके समुद्रमें डूब गये और मन-ही-मन सोचने लगे- 'हाय! उस साध्वी बाला ने मेरी मृत्युकी बात सुनकर प्राण त्याग दिये; फिर भी मैं जीवित हूँ। मुझ निष्ठुर को धिक्कार है। अहो! मैं क्रूर हूँ, अनार्य हूँ, जो मेरे ही लिये मृत्यु को प्राप्त हुई उस मृगनयनी पत्नीके बिना भी अत्यन्त निर्दय होकर जी रहा हूँ।' इसके बाद उन्होंने अपने मनके आवेगको रोका और मोह छोड़कर विचारना आरम्भ किया- "वह मर गयी; इसलिये यदि मैं भी उसके निमित्त अपने प्राण त्याग दूं तो इससे उस बेचारी का क्या उपकार हुआ? यह कार्य तो स्त्रियोंके लिये ही प्रशंसनीय है। यदि बारंबार 'हा प्रिये! हा प्रिये!!' कहकर दीनभाव से रोता हूँ तो यह भी मेरे लिये प्रशंसाके योग्य बात नहीं है। मेरा कर्तव्य तो है- पिताजीकी सेवा करना। यह जीवन उन्हींके अधीन है; अत: मैं कैसे इसका त्याग कर सकता हूँ। किन्तु आजसे स्त्री सम्बन्धी भोगका परित्याग कर देना मैं अपने लिये उचित समझता हूँ। यद्यपि इससे भी उस तन्वङ्गीका कोई उपकार नहीं होता, तथापि मुझको तो सर्वथा विषयभोगका त्याग ही करना उचित है। इससे उपकार अथवा अपकार कुछ भी नहीं होता। जिसने मेरे लिये प्राणतक त्याग दिया, उसके लिये मेरा यह त्याग बहुत थोड़ा है।'
ऐसा निश्चय करके उन्होंने मदालसाके लिये जलाञ्जलि दी और उसके बादका कर्म पूरा करके इस प्रकार प्रतिज्ञा की।
ऋतध्वज बोले- यदि इस जन्ममें मेरी सुन्दरी पत्नी मदालसा मुझे फिर न मिल सकी तो दूसरी कोई स्त्री मेरी जीवनसङ्गिनी नहीं बन सकती। मृगके समान विशाल नेत्रोंवाली गन्धर्वराजकुमारी मदालसा के अतिरिक्त अन्य किसी स्त्रीके साथ मैं सम्भोग नहीं कर सकता। यह मैंने सर्वथा सत्य कहा है।*
* तामृते मृगशावाक्षी गन्धर्वतनयामहम्।
न भोक्ष्ये योषितं काञ्चिदिति सत्यं मयोदितम् ॥
(अ०२३।२०)
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य